गाली गलौज और बदज़ुबानी करने वालों को हम अक़्सर बदतमीज़, फूहड़ और जाहिल समझते हैं। हम ये भी मानकर चलते हैं कि ऐसे लोग न सिर्फ़ असभ्य बल्कि बेअक़्ल भी होते हैं। अमूमन कहा जाता है कि ऐसे लोग चूंकि अपने ग़स्से पर क़ाबू नहीं रख पाते इसलिये बदतमीज़ी पर उतर आते हैं। लेकिन सच्चाई ज़रा अलग है।
यूरोप में हाल ही में हुए कुछ शोध और अध्ययनों से पता चला है कि बदज़ुबानी करने वाले दरअसल अक़्लमंद होते हैं और उनके पास अन्य लोगों की तुलना में कहीं अधिक शब्दों का ज़ख़ीरा होता है।
मनोचिकित्सकों के अनुसार बदतमीज़ लोगों का ‘प्रेसेंस ऑफ माइंड’ ग़ज़ब का होता है और उनके शब्द कोष में ऐसे ऐसे शब्द पाए जाते हैं जिससे आम लोग अनजान रहते हैं।
माना जाता है कि 18 से लेकर 22 साल की उम्र तक के युवा ही नए और अपशब्दों का इस्तेमाल धड़ल्ले से करते हैं। इसके पीछे एक मनोवैज्ञानिक कारण भी है। दरअसल मौजूदा युवा पीढ़ी बोलने या करने से पहले कुछ नहीं सोचती। उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि कौन उनके बारे में क्या सेाचेगा या उनके बोल का किसी पर क्या असर पड़ेगा।
असल में यही वो युवा वर्ग है जो संघर्ष करते हैं और आगे बढ़ने के लिए बेतहाशा मेहनत करते हैं। ऐसे में उन्हें न पीछे मुड़कर देखना पसंद आता है और न ही किसी की परवाह करना उनके लिए एहमियत रखता है। सीखने की इस आयु में उनके पास अपशब्दों की बेशुमार सूची होती है। वे तुरत फुरत सोचने में माहिर होते हैं। अनावश्यक किसी फैसले में पहुंचने के लिए समय बर्बाद करने में भी इन्हें विश्वास नहीं होता।
कहा जा सकता है कि बदज़ुबानी करने वाले सामान्य सोच के परे होते हैं। उनके पास अपनी समझ होती है। ऐसे लोग नकारात्मक कम होते हैं। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि हर अपशब्द बोलने वाला व्यक्ति हर समय समझदार होने के पैमाने में फिट बैठते हैं। मनोचिकित्सकों ने अध्ययनों के दौरान पाया है कि आमतौर पर लोग एक ही किस्म की गाली देते हैं। लेकिन अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि अपशब्दों का उपयोग करने वालों के पास जानवरों की एक लम्बी फेहरिस्त होती है। उन्हें अन्य लोगों की तुलना में अधिक जानवरों के नाम याद होते हैं। यही नहीं उनकी भाषा में भी ठीक ठाक पकड़ होती है।
शोधकर्ताओं ने शोध के दौरान तमाम शब्दों को अलग अलग श्रेणी में रखा। इसमें कुछ गालियां थीं, कुछ अपमानजनक शब्द थे तो कुछ यौन दुर्व्यवहार से जुड़े शब्द थे। देखा गया कि अपशब्दों का उपयोग करने वालों के पास इस तरह के शब्दों का भण्डार होता है। हालांकि इस तरह की गालियां निंदात्मक है। लेकिन यह भी देखा जाता है कि इस तरह की गालियों का उपयोग करने वाला इन शब्दों का उपयुक्त उपयोग समझते हैं।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अपशब्द बोलने वाले हमेशा नासमझ हों, ऐसा नहीं है। उनके पास न सिर्फ बुरे शब्दों का भी भण्डार पाया जाता है वरन उनके पास अच्छे शब्दों की भी लम्बी चौड़ी सूची होती है।