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Atal Bihari Vajpayee Poems: 'गीत नहीं गाता हूं बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं', पढ़ें अटल बिहारी वाजपेयी की 10 प्रसिद्ध कविताएं

अटल बिहारी वाजपेयी देश की प्रेरणा है। उनकी हर एक कविता आपके जीने का नजरिया बदल देगा। पढ़ें उनकी कुछ फेमस कविताएं।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: August 17, 2018 12:16 IST
Atal Bihari Vajpayee- India TV Hindi
Atal Bihari Vajpayee

नई दिल्ली: पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने केवल एक प्रखर राजनेता और ओजस्वी वक्ता खे बल्कि वह एक कवि भी थी। जिसके हर शब्द में जादू था। जिन्होंने एक से बढ़कर एक कविताएं लिखी। आपको बता दें कि भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी अपनी कविताओं का इस्तेमाल अपने भाषणों में खूब करते थे। जिसके कारण जनता उन्हें सम्मान और प्यार अधिक मिलता था।

पूर्व पीएम अटल जी की कविताएं केवल कुछ पक्तियां नहीं होती थी। बल्कि उनके जीवन का नजरिया होता था। वह अपनी कविताओं से घोर निराशा में भी आशा भर देते थे। पढ़ें अटल बिहारी वाजपेयी की कुछ चुनिंदा कविताएं।

गीत नहीं गाता हूं

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।

Atal Bihari Vajpayee

Atal Bihari Vajpayee

खून क्यों सफेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया।
बंट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।

क्षमा करो बापू! तुम हमको,
बचन भंग के हम अपराधी,
राजघाट को किया अपावन,
मंज़िल भूले, यात्रा आधी।

Atal Bihari Vajpayee

Atal Bihari Vajpayee

कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है|
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है|
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है|
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है|

Atal Bihari Vajpayee

Atal Bihari Vajpayee

ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

हरी हरी दूब पर
ओस की बूंदे
अभी थी,
अभी नहीं हैं|
ऐसी खुशियां
जो हमेशा हमारा साथ दें
कभी नहीं थी,
कहीं नहीं हैं|

Atal Bihari Vajpayee

Atal Bihari Vajpayee

भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता-जागता राष्ट्रपुरुष है
हिमालय इसका मस्तक है, गौरीशंकर शिखा है
कश्मीर किरीट है, पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं
दिल्ली इसका दिल है, विन्ध्याचल कटि है

क्या खोया, क्या पाया जग में, मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत, यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!

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