धर्म डेस्क: कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि और शनिवार का दिन है। आज अक्षय नवमी व्रत है। शास्त्रों में अक्षय नवमी का बहुत महत्व बताया गया है। अक्षय का अर्थ होता है- जिसका क्षरण न हो। इस दिन किए गए कार्यों का अक्षय फल प्राप्त होता है। इसे इच्छा नवमी, आंवला नवमी, कूष्मांड नवमी, आरोग्य नवमी और धातृ नवमी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्याओं के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी आवंले के पेड़ पर निवास करते हैं। इस बार आंवला नवमी 17 नवंबर को पड़ रही है। इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजन का भी विधान है। साथ ही इस दिन पूजन, तर्पण, स्नान और दान का बहुत अधिक महत्व है।
पद्म पुराण के अनुसार के अनुसार इस दिन द्वापर युग की शुरुआत हुई थी। आंवला नवमी पर आंवला के वृक्ष के पूजन का बहुत अधिक महत्व है। ज्योतिषों के अनुसार इस नवमी में दान-पुण्य करन से दूसरों नवमी से कई गुना ज्यादा फल मिलता है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से संतान की भी प्राप्ति होती है। जानिए अक्षय नवमी को कैसे करें आंवला वृक्ष की पूजा। (आंवला नवमी 2018: आज का दिन बहुत ही शुभ, करें ये खास उपाय तो होगी अपार धन की प्राप्ति )
ऐसें करें आंवले के वृक्ष की पूजा
इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का विधान है। अगर आपके घर में इसका वृक्ष नही है तो आप बगीचा जाकर पूजन कर सकते है। या फिर घर में ही एक गमलें में आंवला के पौधें को लगाकर पूजा-अर्चना कर सकते है। साथ ही इसके नीचे ही ब्राह्मणों को दान देना पुण्य होता है।
अक्षय नवमी को ब्रह्म मुहूर्त में सभी नित्य कामों से निवृत्त होकर स्नान करें और पूरे विधि-विधान के साथ आंवले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। इसके लिए सबसे पहले अपने दाहिनें हाथ में अक्षत, जल, फूल लेकर इस व्रत का संकल्प इस मंत्र के अनुसार करें-
अद्येत्यादि अमुकगोत्रोमुक (अपना गोत्र बोलें) ममाखिलपापक्षयपूर्वकधर्मार्थकाममोक्षसिद्धिद्वारा
श्रीविष्णुप्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णुपूजनं धात्रीपूजनं च करिष्ये।
इसके बाद आंवला के वृक्ष के नीचे पूर्व दुशा की ओर मुख करके बैठे षोडशोपचार का पूजन इस मंत्र से करें- ऊं धात्र्यै नम:
इसके बाद आंवला के वृक्ष की जड़ की पूजा करें। इसके लिए एक लोटे में दूध लेकर धारा बनाते हुए जड़ में डालते हुए पितरों का तर्पण करें-
पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।
ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवा:।
ते पिवन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।
इसके बाद आंवले के पेड़ के तने में लाल रंग का धागा बांधते हुए इस मंत्र को बोलें
दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।
सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोस्तु ते।।
इसके बाद आंवले के वृक्ष की धूप और दीपक जलाकर आरती करें। इसके बाद आंवले के वृक्ष कम से कम 108 बार परिक्रमा इस मंत्र के साथ करें-
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।
इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें अपने अनुसार दक्षिणा दें। दान में धन, वस्त्र, स्वर्ण, भूमि, फल, अनाज आदि देना चाहिए। अगर आप पितरों की शांति चाहते तो इस दिन ब्राह्मणों को ऊनी कपड़े दें। इससे आपको अधिक लाभ मिलेगा।
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