व्रत कथा
इस व्रत के बारें में एक कथा है। इसके अनुसार विष्णु की नाभि से उत्पन्न होने के बाद ब्रह्मा जी के मन में जिज्ञासा हुई कि वह कौन हैं, उनकी उत्पत्ति कैसे हुई। इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए ब्रह्मा जी परब्रह्म की तपस्या करने लगे। ब्रह्म जी की तपस्या से प्रश्न होकर परब्रह्म भगवान विष्णु प्रकट हुए। विष्णु को सामने देखकर ब्रह्मा जी खुशी से रोने लगे।
इनके आंसू भगवान विष्णु के चरणों पर गिरने लगे। ब्रह्मा जी की इस प्रकार भक्ति भावना देखकर भगवान विष्णु प्रसन्न हुए। और ब्रह्मा जी के आंसूओं से आमकली यानी आंवले का वृक्ष उत्पन्न हुआ।
भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी से कहा कि आपके आंसूओं से उत्पन्न आंवले का वृक्ष और फल मुझे अति प्रिय रहेगा। जो भी आमकली एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करेगा उसके सारे पाप समाप्त हो जाएंगे और व्यक्ति मोक्ष प्राप्ति का अधिकारी होगा। अमालकी एकादशी की कथा में इस संदर्भ में एक राजा की कथा का उल्लेख किया गया है जो पूर्व जन्म में एक शिकारी था।
एक बार आमलकी एकादशी के दिन जब सभी लोग मंदिर में एकादशी का व्रत करके भजन और पूजन कर रहे थे तब मंदिर में चोरी के उद्देश्य से वह मंदिर के बाहर छुप कर बैठा रहा। मंदिर में चल रही पूजा अर्चना देखते हुए वह लोगों के जाने का इंतजार कर रहा था। अगले दिन सुबह हो जाने पर शिकारी घर चला गया।
इस तरह अनजाने में शिकारी से आमलकी एकादशी का व्रत हो गया। कुछ समय बाद शिकारी की मृत्यु हुई और उसका जन्म राज परिवार में हुआ। पण्डित जी कहते है कि कई जगहों पर भगवान विष्णु के थूक से आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति की कथा मिलती है जो सही नहीं है। अगर आंवला भगवान का थूक है तो वह भगवान को इतना प्रिय नहीं हो सकता।
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