धर्म डेस्क: जन्माष्टमी के बाद आने वाली एकादशी को अजा एकादशी के रुप में व्रत रखा जाता है। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी मनाई जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है। इसदिन विधि-विधान के साथ पूजा-पाठ करने से हर पाप की नाश होती है।
शास्त्रों में कहा जाता है कि राजा हरिशचंद्र ने अपने राज्य को पाने के लिए इस व्रत को किया था। जिसके कारण ही उन्हें आप खोया हुआ राज्य पुन: वापस मिल गया था। काल निर्णय के पृष्ठ 257 के अनुसार 8 वर्ष से अधिक और 80 वर्ष से कम हर व्यक्ति को एकादशी का व्रत करना चाहिए और एकादशी पर पका हुआ भोजन नहीं करना चाहिए। फल, मूल, तिल, दूध, जल, घी, पंचद्रव्य और वायु का सेवन करके यह व्रत अवश्य करना चाहिए। जानिए इस क्या उपाय करने से घर में सुख-शांति आती है। जानिए इसकी पूजा विधि और कथा के बारें में।
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ऐसे करें विधि-विधान के साथ पूजा
एकादशी को भी पहले हाथ में जल लेकर सच्चे मन एवं भावना से संकल्प करना चाहिए तथा सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर स्नान करें और भगवान विष्णू जी का धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प एवं फलों सहित पूजन करना चाहिए।
एक समय फलाहार करना चाहिए। तुलसी का रोपण, सिंचन और पूजन करने से प्रभु अति प्रसन्न हो जाते हैं और हरिनाम संकीर्तन करने से अपार कृपा का फल मिलता है। भगवान सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापक हैं तथा बिना मांगे ही अपने भक्त की सारी स्थिति को जानकर उसके सभी कष्टों और चिंताओं को मिटा देते हैं।
जो भक्त केवल भगवान की भक्ति ही सच्चे भाव से करते हैं उन पर भगवान वैसे ही कृपा करते हैं जैसे अपने मित्र सुदामा पर उन्होंने बिना कुछ कहे ही सब कुछ दे डाला, इसलिए भगवान से उनकी सेवा मांगने वाले भक्त सदा सुखी एवं प्रसन्न रहते हैं।
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