आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष की उदया तिथि एकादशी और शुक्रवार का दिन है। एकादशी तिथि आज सुबह 7 बजकर 44 मिनट तक रहेगी। उसके बाद द्वादशी तिथि शुरू हो जाएगी। उदया तिथि एकादशी होने से एकादशी का व्रत आज ही किया जायेगा। भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी का व्रत करने का विधान है। इसे अजा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
आचार्य इंदु प्रकाश के मुताबिक, शास्त्रों में जया एकादशी बड़ी ही फलदायी बतायी गई है। एकादशी में भगवान विष्णु के निमित्त व्रत करने और उनकी पूजा करने का विधान है। वैसे तो कृष्ण पक्ष की एकादशी केवल उनको करनी चाहिए, जो ग्रहस्थ नहीं है, जबकि ग्रहस्थ लोगों को शुक्ल पक्ष की एकादशी करनी चाहिए। साथ ही शुक्ल पक्ष की एकादशी को वो भी कर सकते हैं, जो ग्रहस्थ नहीं है।
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ब्रह्मवैवर्त पुराण और पद्मपुराण में आया है कि गृहस्थ आषाढ़ शुक्ल पक्ष की शयनी और कार्तिक शुक्ल पक्ष की बोधनी एकादशी के मध्य पड़ने वाली कृष्ण पक्ष की एकादशी कर सकते हैं और भाद्रपद कृष्ण पक्ष की ये एकादशी आषाढ़ और कार्तिक शुक्ल पक्ष के बीच में ही पड़ती हैं, लिहाजा आज जो ग्रहस्थ हैं और जो ग्रहस्थ नहीं हैं, दोनों को ये व्रत करना चाहिए और श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए। साथ ही माता लक्ष्मी की भी पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
अजा एकादशी शुभ मुहूर्त
2 सितंबर 2021 को सुबह 06 बजकर 21 मिनट पर एकादशी तिथि शुरू होगी और शुक्रवार को 3 सितंबर 2021 को सुबह 07 बजकर 44 मिनट पर अजा एकादशी समाप्त होगी।
एकादशी का पारणा मुहूर्त
4 सितंबर को सुबह 05 बजकर 30 मिनट से सुबह 08 बजकर 23 मिनट तक रहेगा।
अजा एकादशी व्रत पूजा विधि
एकादशी के दिन सूर्योदय के समय उठकर सही कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद भगवान विष्णु का मनन करते हुए व्रत का संकल्प लें और इसके बाद धूप, दीप, चंदन, फल, तिल और पंचामृत से भगवान विष्णु की पूजा करें। पूरे दिन व्रत रखें। संभव हो तो रात्रि में भी व्रत रखकर जागरण करें। अगर रात्रि में व्रत संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ व सुपारी देकर विदा करें फिर खुद भोजन कर लें। इस प्रकार नियमपूर्वक जया एकादशी का व्रत करने से महान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, जो जया एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें पिशाच योनि में जन्म नहीं लेना पड़ता।
अजा एकादशी की कथा
भगवान के बताया कि एक बार नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष आये थे। इसी दौरान एक कार्यक्रम में गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। इसी सभा में गायन कर रहे माल्यवान नाम के गंधर्व पर नृत्यांगना पुष्पवती मोहित हो गयी। अपने प्रबल आर्कषण के चलते वो सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो जाए। ऐसा ही हुआ और माल्यवान अपनी सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक कर सुर ताल भूल गया। इन दोनों की भूल पर इन्द्र क्रोधित हो गए और दोनों को शाप दे दिया कि वे स्वर्ग से वंचित हो जाएं और पृथ्वी पर अति नीच पिशाच योनि को प्राप्त हों।
शाप के प्रभाव से दोनों पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर अत्यंत कष्ट भोगते हुए रहने लगे। एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनो अत्यंत दु:खी थे जिस के चलते उन्होंने सिर्फ फलाहार किया और उसी रात्रि ठंड के कारण उन दोनों की मृत्यु हो गई। इस तरह अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने के कारण दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गयी। वे पहले से भी सुन्दर हो गए और पुन: स्वर्ग लोक में स्थान भी मिल गया। जब देवराज इंद्र ने दोनों को वहां देखा तो चकित हो कर उनसे मुक्ति कैसे मिली यह पूछा। तब उन्होंने बताया कि ये भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। इन्द्र इससे प्रसन्न हुए और कहा कि वे जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए अब से उनके लिए आदरणीय हैं अत: स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें।