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Ahoi Ashtami 2021: अहोई अष्टमी आज, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और चंद्रोदय का समय

अहोई अष्टमी का व्रत माताएं अपने बच्चों के सुखी जीवन, खुशहाली, लंबी आयु और धन-धान्य की बढ़ोतरी के लिए रखती हैं। जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : October 28, 2021 10:16 IST
Ahoi ashtami 2021 puja a shubh muhurat katha significance and pujan vidhi
Image Source : INDIA TV Ahoi ashtami 2021 puja a shubh muhurat katha significance and pujan vidhi 

अहोई अष्टमी का त्योहार करवाचौथ से चार दिन बाद और दिवाली से 8 दिन पहले मनाया जाता है। अहोई अष्टमी का ये त्योहार संतान के लिये किया जाता है। इस दिन माताएं अपने बच्चों के सुखी जीवन, खुशहाली, लंबी आयु और उनके जीवन में धन-धान्य की बढ़ोतरी के साथ ही करियर में सफलता के लिये व्रत करती हैं, साथ ही संतान प्राप्ति की कामना रखने वाली महिलाएं भी अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं।  इस दिन अहोई माता की पूजा की जाती है और पूरा दिन व्रत करने के बाद शाम के समय तारों को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। कुछ लोग अपनी मान्यताओं के अनुसार चांद को अर्घ्य देकर भी व्रत खोलते हैं। आचार्य इंदु प्रकाश से जानिए अहोई अष्टमी की पूजा विधि।  

अहोई अष्टमी शुभ मुहूर्त

पूजा का शुभ मुहूर्त-  शाम 5 बजकर 39  मिनट से 6 बजकर 56 मिनट

तारों को देखने के लिए शाम का समय- शाम 6 बजकर 3 मिनट
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय- शाम 11 बजकर 29 मिनट

अहोई अष्टमी पूजा विधि
आज स्नान आदि के बाद, साफ-सुथरे कपड़े पहनकर, श्रृंगार करके महिलाओंको व्रत का संकल्प लेना चाहिए और कहना चाहिए कि संतान की लम्बी आयु एवं सुखमय जीवन हेतु मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं। अहोई माता मेरी संतान को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें। फिर पूजा के लिये घर की उत्तर-पूर्व दिशा को अच्छे से साफ करके वहां पर गीला कपड़ा मारकर लकड़ी की चौकी बिछाएं और उस पर एक लाल कपड़ा बिछाएं। 

अब उस पर अहोई माता की तस्वीर रखिए। कुछ लोग दीवार पर गेरु से भी अहोई माता का चित्र बनाते हैं। इस चित्र में अहोई माता, सूरज, तारे, बच्चे, पशु आदि के चित्र बने होते हैं। बहुत-सी महिलाएं चांदी की अहोई भी बनवाती हैं, जिसे चांदी की गोलियों के साथ पिरोकर पूजा के समय गले में पहना जाता है । इसे स्थानीय भाषा में स्याहु कहते हैं। 

अहोई माता की स्थापना के बाद चौकी की उत्तर दिशा में गोबर से जमीन को लीपकर, उस पर जल से भरा कलश रखिए और उसमें थोड़े-से चावल के दाने डालिए। अब कलश पर कलावा बांधिये और रोली का टीका लगाइए। इसके बाद अहोई माता को रोली-चावल का टीका लगाइये और फिर भोग लगाइए। भोग के लिये आठ पूड़ियां या आठ मीठे पूड़े रखे जाते हैं। आठ की संख्या में होने के कारण इसे अठवारी भी कहते हैं। इसके साथ ही देवी मां के सामने एक चावल से भरी कटोरी, मूली और सिंघाड़े भी रखे जाते हैं। अब दीपक जलाकर देवी मां की आरती करें और फिर अहोई माता की कथा का पाठ करें।

कथा सुनते समय अपने दाहिने हाथ में थोड़े-से चावल के दाने रखने चाहिए और कथा सम्पूर्ण होने के बाद उन चावल के दानों को अपनी साड़ी या चुनरी के पल्ले में गांठ लगाकर बांध लें। अब शाम के समय इन्हीं चावलों को लेकर कलश में रखे जल से अपनी मान्यता अनुसार तारों या चन्द्रमा को अर्घ्य दें। बाकी पूजा में रखी सारी चीज़ों को, चावल से भरी कटोरी, मूली, सिंघाड़े, मीठे पूड़े या पूड़ी का प्रसाद आदि ब्राह्मण के घर दान कर दें। इसके अलावा अहोई की तस्वीर के संदर्भ में ऐसी मान्यता है कि इसे दिवाली तक लगाये रखना चाहिए। 

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