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Ahoi Ashtami 2020: 8 नवंबर को अहोई अष्टमी व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

अहोई अष्टमी के दिन संतान की लंबी आयु और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए महिलाएं व्रत रखती हैं। यह दिन देवी अहोई को समर्पित होती है। जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : November 07, 2020 14:21 IST
Ahoi Ashtami 2020: जानिए कब है अहोई अष्टमी व्रत, साथ ही जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा
Image Source : INSTAGRAM/DIMPLE_COOKS Ahoi Ashtami 2020: जानिए कब है अहोई अष्टमी व्रत, साथ ही जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी का व्रत  रखा जाता है। यह व्रत  करवा चौथ से चार दिन बाद और दिवाली से 8 दिन पहले मनाया जाता है।  इस दिन माता अहोई की पूजा-अर्चना की जाती है। महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए यह व्रत रखती हैं। यह व्रत भी काफी कठोर माना जाता है। इस बार यह व्रत 8 नवंबर को पड़ रहा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस व्रत के फल से हर इच्छा पूरी हो जाती है। इस दिन मां पार्वती की पूजा की जाती है। जानिए अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त पूजा विधि और व्रत कथा।  

अहोई अष्टमी व्रत का शुभ मुहूर्त

अष्टमी तिथि प्रारम्भ – 8 नवंबर को सुबह  7 बजकर  2 9 मिनट

अष्टमी तिथि समाप्त – 9 नवंबर को सुबह 6 बजकर 50 मिनट तक
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त- शाम 5 बजकर 27 मिनट से शाम 6 बजकर 47 मिनट तक
तारों को देखने का समय: शाम 5 बजकर 56 मिनट।
चंद्रोदय का समय:  रात 11 बजकर 56 मिनट ।

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अहोई अष्टमी की पूजा विधि

अहोई अष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान करें और निर्जला व्रत रखने का संकल्प लें। शाम के समय श्रृद्धा के साथ दीवार पर अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं। उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। आजकल बाजार में रेडीमेड तस्वीर मिल जाती है। माता की पूजा शुरू होती है। इसके लिए सबसे पहले एक स्थान को अच्छी तरह साफ करके उसका चौक पूर लें। फिर एक लोटे में जल भर कलश की तरह एक जगह स्थापित कर दें। इसके ऊपर करवा रखें। ध्यान रखें कि यह करवा कोई दूसरा नहीं बल्कि करवा चौथ में इस्तेमाल किया गया होना चाहिए। इसके साथ ही दीवाली के दिन इस करवे के पानी का छिड़काव पूरे घर पर करना चाहिए। 

संतान की सुख की मन में भावना लेकर हाथ में चावल लेकर अहोई अष्टमी के व्रत की कथा श्रृद्धाभाव से सुनें। कथा समाप्त होने के बाद इस चावल को अपने पल्लू में बांध लें। शाम के समय अहोई अष्टमी की तस्वीर की पूजा करें और मां को लाल रंग फूल के साथ-साथ 8 पुआ, 14 पूरियां और खीर का भोग लगाएं। अब लोटे के पानी और चावलों से तारों को अर्ध्य दें। अब इसके बाद बायना निकालें। जिसमें 14 पूरियां और काजू होते है। इसे आप अपने से बड़ी किसी महिला को सम्मान के साथ दे दें। अब घर में सभी बड़ों के चरण स्पर्श करने के साथ-साथ प्रसाद बांटे और आप भी अपना व्रत खोल लें।

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Ahoi Ashtami 2020: जानिए कब है अहोई अष्टमी व्रत, साथ ही जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

Image Source : INSTAGRAM/BHARTIYAYATRI
Ahoi Ashtami 2020: जानिए कब है अहोई अष्टमी व्रत, साथ ही जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

अगर बनाया हो चांदी की अहोई

अगर आप चांदी का अहोई बनाकर पूजा करते है जिसे बोलचाल की भाषा में स्याऊ कहते है। इसमें आप चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजा करें। इसके लिए एक धागे में अहोई और दोनों चांदी के दानें डाल लें। इसके बाद अहोई की रोली, चावल और दूध से पूजा करें। साथ ही एक लोटे में जल भर कर सातिया बना लें। एक कटोरी में हलवा तथा रुपए का बायना निकालकर रख दें और सात दाने गेहूं के लेकर अहोई माता की कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें, जो बायना निकाल कर रखा है उसे सास की चरण छूकर उन्हें दे दें। इसके बाद चंद्रमा को जल चढ़ाकर भोजन कर व्रत खोलें।

दीवाली के बाद किसी शुभ दिन इस अहोई माला को गले से उतार कर इसमें गुड का भोग और जल से आचमन करके और नमस्कार कर इस किसी अच्छी जगह पर रख दें। इसके बाद अपनी सास को रोली का तिलक लगा कर उनके पैर छूकर इस व्रत का उद्यापन कर सकते है।

अहोई अष्टमी की व्रत कथा

प्राचीन काल में एक साहूकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ चली गई। साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बच्चों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया। जिसेक कारण साही उस पर क्रोधित हो गई और बोली कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
 
साहूकार की बेटी यह बात सुन कर डर गई और अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
 
सुरही गाय सेवा से प्रसन्न होती है और उसे साही के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।

छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें साही के पास पहुंचा देती है। वहां साही छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है। साही के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है और सभी हंसी -खुशी रहने लगते है।

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