अहोई अष्टमी का व्रत हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पूरे भारत वर्ष में मनाया जाता है। अहोई अष्टमी का व्रत करवाचौथ से चार दिन बाद और दिवाली से 8 दिन पहले मनाया जाता है। इस बार अहोई अष्टमी को शुभ संयोग बन रहा है। दरअसल इस बार शाम 05 बजकर 32 मिनट तक पुनर्वसु नक्षत्र बन रहा है। जो बहुत ही सौभाग्यशाली नक्षत्र माना जाता है। इस दिन अहोई अष्टमी व्रत 21 अक्टूबर को है। जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा।
पौराणिक मान्यता के अनुसार इस व्रत के फल से हर इच्छा पूरी हो जाती है। इस दिन मां पार्वती की पूजा की जाती है। यह व्रत संतान की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है।
अहोई अष्टमी व्रत का शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 21 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 44 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त: 22 नवंबर को सुबह 05 बजकर 25 मिनट तक।
पूजा का मुहूर्त: 21 अक्टूबर को शाम 05 बजकर 42 मिनट से शाम 06 बजकर 59 मिनट तक।
कुल अवधि: 1 घंटे 17 मिनट.
तारों को देखने का समय: शाम 06 बजकर 10 मिनट।
चंद्रोदय का समय: 21 अक्टूबर 2019 को रात 11 बजकर 46 मिनट तक।
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अहोई अष्टमी पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान करें और निर्जला व्रत रखने का संकल्प लें। शाम के समय श्रृद्धा के साथ दीवार पर अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं। उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। आजकल बाजार में रेडीमेड तस्वीर मिल जाती है।
माता की पूजा शुरू होती है। इसके लिए सबसे पहले एक स्थान को अच्छी तरह साफ करके उसका चौक पूर लें। फिर एक लोटे में जल भर कलश की तरह एक जगह स्थापित कर दें। इसके ऊपर करवा रखें। ध्यान रखें कि यह करवा कोई दूसरा नहीं बल्कि करवा चौथ में यूज किया गया होना चाहिए। इसके साथ ही दीवाली के दिन इस करवे के पानी का छिड़काव पूरे घर पर करना चाहिए।
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संतान की सुख की मन में भावना लेकर हाथ में चावल लेकर अहोई अष्टमी के व्रत की कथा श्रृद्धाभाव से सुनें।
कथा समाप्त होने के बाद इस चावल को अपने पल्लू में बांध लें।
शाम के समय अहोई अष्टमी की तस्वीर की पूजा करें और मां को लाल रंग फूल के साथ-साथ 8 पुआ, 14 पूरियां और खीर का भोग लगाएं।
अब लोटे के पानी और चावलों से तारों को अर्ध्य दें।
अब इसके बाद बायना निकालें। जिसमें 14 पूरियां और काजू होते है। इसे आप अपने से बड़ी किसी महिला को सम्मान के साथ दे दें।
अब घर में सभी बड़ों के चरण स्पर्श करने के साथ-साथ प्रसाद बांटे और आप भी अपना व्रत खोल लें।
अगर बनाया हो चांदी की अहोई
अगर आप चांदी का अहोई बनाकर पूजा करते है जिसे बोलचाल की भाषा में स्याऊ कहते है। इसमें आप चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजा करें। इसके लिए एक धागे में अहोई और दोनों चांदी के दानें डाल लें। इसके बाद अहोई की रोली, चावल और दूध से पूजा करें। साथ ही एक लोटे में जल भर कर सातिया बना लें।
एक कटोरी में हलवा तथा रुपए का बायना निकालकर रख दें और सात दाने गेहूं के लेकर अहोई माता की कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें, जो बायना निकाल कर रखा है उसे सास की चरण छूकर उन्हें दे दें। इसके बाद चंद्रमा को जल चढ़ाकर भोजन कर व्रत खोलें।
दीवाली के बाद किसी शुभ दिन इस अहोई माला को गले से उतार कर इसमें गुड का भोग और जल से आचमन करके और नमस्कार कर इस किसी अच्छी जगह पर रख दें। इसके बाद अपनी सास को रोली का तिलक लगा कर उनके पैर छूकर इस व्रत का उद्यापन कर सकते है।