अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) : कार्तिक कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि और बुधवार के दिन यह व्रत पड़ रहा है। जो कि आज सुबह 11 बजकर 10 मिनट तक ही रहेगी, उसके बाद अष्टमी लग जायेगी और हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी मनाई जाती है। इस बार अहोई अष्टमी बहुत ही शुभ संयोग में है। इस बार पुष्प नक्षत्र के साथ-साथ रोज योग भी बन रहा है। जो कि कुछ माताओं के लिए विशेष लाभ देकर जाएगा।
अहोई अष्टमी का त्योहार करवाचौथ से चार दिन बाद और दिवाली से 8 दिन पहले मनाया जाता है। खुशहाली, लंबी आयु और उनके जीवन में धन-धान्य की बढ़ोतरी के साथ ही करियर में सफलता के लिये व्रत करती हैं। इसके साथ जिनकी संतान अभी तक नहीं हुई है, वो महिलाएं भी संतान प्राप्ति के लिये अहोई अष्टमी का व्रत कर सकती हैं। इस दिन अहोई माता की पूजा की जाती है और पूरा दिन व्रत करने के बाद शाम के समय तारों को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। कुछ लोग अपनी मान्यताओं के अनुसार चांद को अर्घ्य देकर भी व्रत खोलते हैं। (Ahoi Ashtami 2018: कई सालों बाद अहोई अष्टमी को बन रहा है विशेष संयोग, संतान की खुशहाली के लिए करें ये खास उपाय )
अहोई अष्टमी की तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 31 अक्टूबर 2018 को सुबह 11 बजकर 09 मिनट से।
अष्टमी तिथि समाप्त: 01 नवंबर 2018 को सुबह 09 बजकर 10 मिनट तक।
पूजा का शुभ समय: 31 अक्टूबर 2018 को शाम 05 बजकर 45 मिनट से शाम 07 बजकर 02 मिनट तक।
कुल अवधि: 1 घंटे 16 मिनट।
तारों को देखने का समय: 31 अक्टूबर को शाम 06 बजकर 12 मिनट।
चंद्रोदय का समय: 1 नवंबर 2018 को रात 12 बजकर 06 मिनट।
अहोई अष्टमी पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान करें और निर्जला व्रत रखने का संकल्प लें। शाम के समय श्रृद्धा के साथ दीवार पर अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं। उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। सूर्यास्त के बाद माता की पूजा शुरू होती है। इसके लिए सबसे पहले एक स्थान को अच्छी तरह साफ करके उसका चौक पूर लें। फिर एक लोटे में जल भर कलश की तरह एक जगह स्थापित कर दें। संतान की सुख की मन में भावना लेकर पूजा करते हुए अहोई अष्टमी के व्रत की कथा श्रृद्धाभाव से सुनें। (Diwali 2018: जानें दीवाली के साथ किस दिन मनाया जाएगा कौन सा त्योहार )
अगर बनाया हो चांदी की अहोई
अगर आप चांदी का अहोई बनाकर पूजा करते है जिसे बोलचाल की भाषा में स्याऊ कहते है। इसमें आप चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजा करें। इसके लिए एक धागे में अहोई और दोनों चांदी के दानें डाल लें। इसके बाद अहोई की रोली, चावल और दूध से पूजा करें। साथ ही एक लोटे में जल भर कर सातिया बना लें। (Dhanteras 2018 Date: जानें कब है धनतेरस, क्या है खरीददारी का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि )
एक कटोरी में हलवा तथा रुपए का बायना निकालकर रख दें और सात दाने गेहूं के लेकर अहोई माता की कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें, जो बायना निकाल कर रखा है उसे सास की चरण छूकर उन्हें दे दें। इसके बाद चंद्रमा को जल चढ़ाकर भोजन कर व्रत खोलें।
दीवाली के बाद किसी शुभ दिन इस अहोई माला को गले से उतार कर इसमें गुड का भोग और जल से आचमन करके और नमस्कार कर इस किसी अच्छी जगह पर रख दें। इसके बाद अपनी सास को रोली का तिलक लगा कर उनके पैर छूकर इस व्रत का उद्यापन कर सकते है।
अहोई अष्टमी की पौराणिक व्रत कथा
प्राचीन काल में एक साहूकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ चली गई। साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया। जिसेक कारण साही उस पर क्रोधित हो गई और बोली कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
साहूकार की बेटी यह बात सुन कर डर गई और अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे साही के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।
छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें साही के पास पहुंचा देती है। वहां साही छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है। साही के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है और सभी हंसी -खुशी रहने लगते है।