हेल्थ डेस्क: करवाचौथ के बाद अब सभी को दिवाली का इंतजार रहता है। लेकिन इससे पहले कार्तिक माह की अष्टमी के दिन आता अहोई अष्टमी का व्रत। उत्तर भारत में ज्यादा इस व्रत का प्रचलन है।
कार्तिक माह को त्योहारों का मास कहा जाता है, क्योकि इस माह में करवा चौथ, अहोई अष्टमी, दीपावली, भाईदूजा जैसे हिंदू धर्म के मुख्य त्यौहार होते है। करवा चौथ के चार दिन बाद अहोई अष्टमी का निर्जला व्रत रखा जाता है। यह व्रत भी करवा चौथ की तरह ही खास होता है। जिस तरह करवा चौथ में पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखा जाता है। उसी तरह अहोई अष्टमी में संतान की दीर्घायु और सुख के लिए रखा जाता है। इस बार अहोई अष्टमी व्रत 12 अक्टूबर, गुरुवार को है।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई या फिर आठे कहते है। अहोई का अर्थ एक यह भी होता है अनहोनी को होनी बनाना। यह व्रत आमतौर पर करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली से ठीक आठ दिन पहले पड़ता है। मान्यता है कि इस व्रत को केवल संतान वाली महिलाएं ही रख सकती है, क्योंकि यह व्रत बच्चों के सुख के लिए रखा जाता है। इस व्रत में अहोई देवी की तस्वीर के साथ सेई और सेई के बच्चों के चित्र भी बनाकर पूजे जाते हैं।
शुभ मुहूर्त
सुबह: 6 बजकर 14 मिनट से 7 बजकर 28 मिनट तक
शाम: 6 बजकर 39 मिनट
इस विधि से करें पूजा
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान करें और निर्जला व्रत रखने का संकल्प लें। शाम के समय श्रृद्धा के साथ दीवार पर अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं। उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। सूर्यास्त के बाद माता की पूजा शुरू होती है। इसके लिए सबसे पहले एक स्थान को अच्छी तरह साफ करके उसका चौक पूर लें। फिर एक लोटे में जल भर कलश की तरह एक जगह स्थापित कर दें। संतान की सुख की मन में भावना लेकर पूजा करते हुए अहोई अष्टमी के व्रत की कथा श्रृद्धाभाव से सुनें।
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