मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि और मंगलवार का दिन है। प्रतिपदा तिथि शाम 4 बजकर 52 मिनट तक रहेगी। हिन्दी महीनों के अनुसार ये साल का नौंवा महीना है, जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस महीने को स्वयं भगवान का स्वरूप माना जाता है। आचार्य इंदु प्रकाश से जानिए मार्गशीर्ष माह के बारे में।
मार्गशीर्ष माह को ‘मार्गशीर्ष’ कहते क्यों हैं। दरअसल जिस महीने की पूर्णिमा तिथि जिस नक्षत्र से युक्त होती है, उस नक्षत्र के आधार पर ही उस महीने का नामकरण किया जाता है। चूंकि इस महीने की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है, इसलिये इस माह को मार्गशीर्ष कहा जाता है। इसके अलावा इसे मगसर, मंगसिर, अगहन, अग्रहायण आदि नामों से भी जाना जाता है। ये पूरा मास बड़ा ही पवित्र माना गया है। साथ ही इसकी महिमा स्वयं श्री कृष्ण भगवान ने गीता में बतायी है। गीता के 10वें अध्याय के 35वें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है -
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।
मासानां मार्गशीर्ष Sहमृतूनां कुसुमाकरः।।
अर्थात् गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छन्दों में मैं गायत्री छन्द हूं तथा महीनों में मागर्शीर्ष और ऋतुओं में बसन्त मैं हूं। अतः इस महीने में भगवान श्री कृष्ण की उपासना की बड़ी ही महिमा है। इस महीने में भगवान श्री कृष्ण की उपासना करने से व्यक्ति को जीवन में हर तरह की सफलता प्राप्त होती है और वो हर तरह के संकट से बाहर निकलने में सक्षम होता है।
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माना जाता है कि सतयुग में देवों ने वर्ष का आरम्भ मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से ही किया था। साथ ही ऋषि कश्यप ने भी इसी महीने के दौरान कश्मीर नामक जगह की स्थापना की थी, जो कि इस समय भारत का अभिन्न अंग है। मार्गशीर्ष मास के दौरान स्नान-दान का बड़ा ही महत्व है। विशेषकर इस महीने के दौरान यमुना नदी में स्नान का महत्व है। कहते हैं मार्गशीर्ष महीने के दौरान यमुना नदी में स्नान करने से भगवान सहज ही प्राप्त होते हैं। अतः जो लोग जीवन में भगवान का आशीर्वाद बनाये रखना चाहते हैं और हर संकट से छुटकारा पाना चाहते हैं, उन्हें मार्गशीर्ष के दौरान कम से कम एक बार यमुना नदी में स्नान करने अवश्य जाना चाहिए, लेकिन जिन लोगों के लिये ऐसा करना संभव नहीं है, वो लोग घर पर ही अपने स्नान के पानी में थोड़ा-सा पवित्र जल मिलाकर स्नान कर लें।ष
ऐसे स्नान करने से मिलेगा विशेष लाभ
मार्गशीर्ष के दौरान सुबह जल्दी उठकर स्नान से पवित्र होकर भगवान का ध्यान करना चाहिए और उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। स्नान से पहले तुलसी की जड़ की मिट्टी से भी स्नान करें, यानी अपने शरीर पर उसका लेप लगाएं और लेप लगाने के कुछ देर बाद पानी से स्नान करें। साथ ही स्नान के समय 'ॐ नमो भगवते नारायणाय' या गायत्री मंत्र का जप करें।