एक अन्य अध्ययन में दावा किया गया है कि ऑटिज्म पीडि़त बच्चे जब अपने आसपास की चीजों को देखते हैं, तो उनका दिमाग आपस में तालमेल नहीं बिठा पाता। इस स्थिति में उन्हें ठीक वैसा अहसास होता है, जैसे बुरे ढंग से डबिंग की गई किसी फिल्म को देखने पर आम इनसान को होता है। ऐसे में बच्चे अपनी आंख ओर कान का इस्तेमाल कर आसपास की घटनाओं को जोड़ने का प्रयास करते हैं।
'वेंडरबिल्ट ब्रेन इंस्टीट्यूट' के शोधकर्ताओं ने इस नयी खोज को बहुत अहम माना है और उन्हें उम्मीद है कि इससे ऑटिज्म के लिए नए इलाज ढूंढने में मदद मिलेगी।
शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर शुरुआती दौर में ही बच्चों की संवेदक कार्यक्षमता को दुरुस्त किया जा सके तो उनके बातचीत करने के तरीकों को सुधारा जा सकता है। यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है जो इस ओर इशारा करता है कि संवदेक गतिविधियों में रुकावट आने पर ऑटिज्म पीडि़त बच्चों के बातचीत करने का तरीका प्रभावित होता है। शोधकर्ताओं ने 6 से 18 वर्ष तक की आयु के बच्चों पर अध्ययन किया।
ऑटिज्म पीडि़त बच्चों और सामान्य रूप से बढ़ने वाले बच्चों की तुलना के दौरान दोनों समूहों के बच्चों को कंप्यूटर पर अलग-अलग तरह के टास्क दिए गए। शोधकर्ताओं ने पाया कि ऑटिज्म पीडि़त बच्चों को आवाज और वीडियो के बीच सामंजस्य बिठाने में दिक्कत हुई जिससे वह टास्क में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 18 दिसंबर 2007 को एक प्रस्ताव पारित कर 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। इस आशय का प्रस्ताव कतर ने पेश किया था। इस दिन दुनियाभर में प्रमुख इमारतों पर नीली रौशनी की जाती है और इस मानसिक विकार से पीड़ित लोगों को दिल से अपनाने और उनमें मौजूद हुनर को निखारने में उनकी मदद करने का आह्वान किया जाता है।
इस बीमारी की रोकथाम से जुड़े लोग और संस्थाएं इसके कारण, निदान और निवारण की दिशा में और अधिक प्रयास करने का संकल्प लेते हैं ताकि एक दिन ऐसा आए जब अपने आप से और सारे आलम से बेपरवाह कर देने वाली इस बीमारी का इलाज मिल सके।