गठिया रोग (आर्थराइटिस) बुजुर्गो की आम बीमारी है। इस बीमारी के मरीजों की संख्या दिनोदिन बढ़ती जा रही है। इस असाध्य रोग के बहुत से मरीज अक्सर नीम-हकीमों पर भरोसा कर लेते हैं। गठिया रोग को झोलाछाप चिकित्सकों के चूर्ण और गोलियां रोग को और जटिल कर देती हैं।
किंग जॉर्ज मेडिकल कालेज के अस्थिरोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. धर्मेद्र कुमार का कहना है कि आर्थराइटिस गंभीर बीमारी है। इस समय देश की पूरी जनसंख्या में से करीब 15 प्रतिशत लोग गठिया की चपेट में हैं। एक अध्ययन में पाया गया है कि देश में आर्थराइटिस से जुड़े मरीजों की संख्या बहुत बढ़ रही है। भारत में लगभग 18 करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं।
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उन्होंने कहा, "बदलते परिवेश में यह बीमारी युवाओं को भी अपनी चपेट में ज्यादा ले रही है। हमारे यहां ओपीडी में 25-30 साल के मरीज भी आते हैं। उन्हें देखकर लगता है कि रुमेटॉएड आर्थराइटिस युवाओं में भी बढ़ रहा है।"
आर्थराइटिस के लक्षण
डॉ. कुमार ने कहा, "यह रोग किसी एक कारण से नहीं होता। विटामिन डी की कमी से मरीज की अंगुलियों, घुटने, गर्दन, कोहनी के जोड़ों में दर्द की शिकायत होने लगी है। इस बीमारी पर काबू पाने के लिए फिजियोथेरेपी और एक्सरसाइज रोजाना करना चाहिए। जंक फूड से परहेज जरूरी है।"
उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग झोलाछाप डॉक्टरों की गोलियों पर विश्वास करने लगते हैं। कुछ दिन राहत देने के बाद ऐसी गोलियां और चूर्ण सबसे नुकसानदेह साबित होते हैं। उनमें स्वाइड मिली होती है। यह बहुत दिनों तक लेने से शरीर को नुकसान पहुंचाती है। इससे कूल्हा गल सकता है। हड्डियां कमजोर हो सकती हैं। फ्रैक्चर होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
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डॉ. कुमार ने बताया कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं आर्थराइटिस की चपेट में ज्यादा आती हैं। खानपान में परहेज न करना इसका मुख्य कारण है।
गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज के प्रचार्य रह चुके डॉ.आनंद पिछले 25 वर्षो से घुटना रक्षित तकनीक पर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि शरीर में गठिया पैदा न हो, इसके लिए नियमित व्यायाम करना और संतुलित भोजन लेना चाहिए, क्योंकि शरीर में गठिया एक बार विकसित हो जाता है तो इससे कई और तरह की बीमारियां पैदा हो जाती हैं।
उन्होंने कहा कि गठिया से पहले जोड़ों में दर्द शुरू हो जाता है, फिर यह अपने विकराल रूप में आते-आते उठने-बैठने और चलने-फिरने में परेशानी पैदा करने लगता है। शरीर का वजन भी बढ़ने लगता है। मोटापे से जहां हाइपरटेंशन, हार्ट फेलियर, अस्थमा, कोलेस्ट्राल, बांझपन समेत 53 तरह की बीमारियां पैदा हो जाती हैं, वहीं शरीर में गठिया के बने रहने से रक्तचाप और मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज और मुश्किल हो जाता है।
क्यों होता है गठिया?
डॉ.आनंद ने बताया कि गठिया को आर्थराइटिस या संधिवात कहते हैं। यह 100 से भी ज्यादा प्रकार का होता है। गठिया रोग मूलत: प्यूरिन नामक प्रोटीन के मेटाबोलिज्म की विकृति से होता है। खून में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है। व्यक्ति जब कुछ देर के लिए बैठता या फिर सोता है तो यही यूरिक एसिड जोड़ों में इकठ्ठा हो जाते हैं, जो अचानक चलने या उठने में तकलीफ देते हैं।
उन्होंने कहा कि शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाने पर यह गठिया का रूप ले लेता है। ध्यान न देने पर घुटना, कूल्हा आदि इंप्लांट करने की भी नौबत आ जाती है। हालांकि घुटना रक्षित तकनीक से लंबे समय तक घुटने के दर्द से बचा जा सकता है। घुटना अधिक खराब होने पर घुटना रक्षित शल्य (नी प्रिजरवेटिव सर्जरी) के जरिए 10 से 15 वर्ष के लिए घुटना प्रत्यारोपण से बचा जा सकता है।
डॉ.आनंद की सलाह है :
- यदि आपके जोड़ों में जरा सा भी दर्द, शरीर में हल्की अकड़न है तो भी सबसे पहले किसी डॉक्टर को दिखाएं।
- कोशिश करें कि दिनचर्या नियमित रहे।
- डॉक्टर की सलाह पर नियमित व्यायाम करें।
- नियमित टहलें, घूमें-फिरें, व्यायाम एवं मालिश करें।
- सीढ़ियां चढ़ते समय, घूमने-फिरने जाते समय छड़ी का प्रयोग करें।
- ठंडी हवा, नमी वाले स्थान व ठंडे पानी के संपर्क में न रहें।.घुटने के दर्द में पालथी मारकर न बैठें।