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सफेद दाग से हैं परेशान तो उससे जुड़ी इन खास बातों को कभी न करें इग्नोर

विटिलिगो (ल्यूकोडर्मा) एक प्रकार का त्वचा रोग है। दुनिया भर की लगभग 0.5 प्रतिशत से एक प्रतिशत आबादी विटिलिगो से प्रभावित है, लेकिन भारत में इससे प्रभावित लोगों की आबादी लगभग 8.8 प्रतिशत तक दर्ज किया गया है।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published : June 24, 2018 14:04 IST
skin care
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हेल्थ डेस्क: विटिलिगो (ल्यूकोडर्मा) एक प्रकार का त्वचा रोग है। दुनिया भर की लगभग 0.5 प्रतिशत से एक प्रतिशत आबादी विटिलिगो से प्रभावित है, लेकिन भारत में इससे प्रभावित लोगों की आबादी लगभग 8.8 प्रतिशत तक दर्ज किया गया है। देश में इस बीमारी को समाज में कलंक के रूप में भी देखा जाता है। विटिलिगो किसी भी उम्र में शुरू हो सकता है, लेकिन विटिलिगो के आधा से ज्यादा मामलों में यह 20 साल की उम्र से पहले ही विकसित हो जाता है, वहीं 95 प्रतिशत मामलों में 40 वर्ष से पहले ही विकसित होता है। 

दुनियाभर में त्वचा त्वचा विशेषज्ञों का दूसरा सबसे बड़ा एसोसिएशन एवं देश के डर्मेटोलाजिस्ट का सबसे बड़ा आधिकारिक संगठन इंडियन एसोसिएशन ऑफ डर्मेटोलॉजिस्टस, वेनेरियोलोजिस्ट एंड लेप्रोलॉजिस्ट (आई.ए.डी.वी.एल) ने 22 जून को 'विश्व विटिलिगो दिवस' के मौके पर विटिलिगो के उपचार विकल्पों, इससे जुड़े तथ्यों व मिथकों पर प्रकाश डाला। 

इस दौरान विटिलिगो के उपचार पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। साथ ही इससे होने वाले अवसाद को रोकने व त्वचा की स्थिति पर भी जानकारी दी।

विटिलिगो एक प्रकार का त्वचा विकार है, जिसे सामान्यत: ल्यूकोडर्मा के नाम से जाना जाता है। इसमें आपके शरीर की स्वस्थ कोशिकाएं प्रभावित होती हैं। इस बीमारी का क्रम बेहद परिवर्तनीय है। कुछ रोगियों में घाव स्थिर रहता है, बहुत ही धीरे-धीरे बढ़ता है, जबकि कुछ मामलों में यह रोग बहुत ही तेजी से बढ़ता है और कुछ ही महीनों में पूरे शरीर को ढक लेता है। वही कुछ मामलों में, त्वचा के रंग में खुद ब खुद पुनर्निर्माण भी देखा गया है।

जब आपके शरीर में मेलेनोसाइट्स मरने लगते हैं, तब इससे आपकी त्वचा पर कई सफेद धब्बे बनने शुरू होते हैं। इस स्थिति को सफेद कुष्ठ रोग भी कहा जाता है। यह आमतौर पर शरीर के उन हिस्सों जो कि सूरज की रोशनी के सीधे संपर्क में आते हैं, चेहरे, हाथों और कलाई के क्षेत्र इससे ज्यादा प्रभावित होते है। 

समाज में विटिलिगो से जुड़े कई मिथकों के कारण प्रभावित लोगों को अक्सर सामाजिक बहिष्कार का सामना भी करना पड़ता हैं। विटिलिगो व्यक्ति की दैनिक गतिविधियों को प्रभावित नहीं करता है। इसे लेकर जागरूकता फैलाने की जरूरत है।

आई.ए.डी.वी.एल की अध्यक्ष एवं मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर डॉ रश्मि सरकार ने कहा, "यह अनुमान लगाया गया है कि प्रभावित व्यक्तियों में से 75प्रतिशत लोगों के मन में अपने प्रति खुद की नकारात्मक छवि होती है। त्वचा विशेषज्ञ के रूप में हम अक्सर चिंताग्रस्त माता-पिता एवं युवाओं से मिलते है,जिन्हें शरीर के किसी हिस्से के रंग में कोई अंतर दिखाई देते ही पर वे विटिलिगो होने के संदेह का सामना करने लगते हैं। सबसे आम संदेहों में इसके इलाज का डर, सफेद धब्बों के फैलने का भय, भविष्य में बच्चों को इससे संक्रमित होने की संभावना, पति / पत्नी से आपस में संभावित संक्रमण इत्यादि से आत्मविश्वास में कमी के साथ-साथ मानसिकता भी प्रभावित होती है।"

इसे लेकर मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर एवं आई.ए.डी.वी.एल. दिल्ली सचिव डॉ कृष्णा देब बर्मन इस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मुख्य रूप से दो प्रकार है।

इसमें स्थानीय विटिलिगो-के मामलों में कई मरीजो में देखा गया है की कई सालों तक किसी नए धब्बे का विकास नहीं हुआ है, वही समय बीतने के साथ-साथ रंग हल्का होता जाता है। वही दूसरे मामलों में बिना किसी उपचार के ही स्वत: त्वचा के मूल रंगों का पुनर्निर्माण होने लगता है।

सामान्य विटिलिगो- सामान्य विटिलिगो एक प्रगतिशील बीमारी है, जिसके परिणामस्वरूप पूरे जीवनकाल में इसकी स्थिरता व फैलाव का चक्र काफी हद तक अप्रत्याशित होता हैं लेकिन विटिलिगो किसी भी तरह से संक्रामक नहीं है।

विटिलिगो के होने का सटीक कारण को अभी तक पहचाना नहीं जा सका है, हालांकि यह आनुवांशिक एवं पर्यावरणीय कारकों के संयोजन का परिणाम प्रतीत होता है। कुछ लोगों ने सनबर्न या भावनात्मक तनाव जैसे कारकों को भी इसके लिए जिम्मेवार बताया है। आनुवंशिकता विटिलिगो का एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है, क्योंकि कुछ परिवारों में विटिलिगो को बढ़ते हुये देखा गया है। विटिलिगो के इलाज के लिए, टोपिकल, विभिन्न सर्जरी, लेजर चिकित्सा एवं अन्य वैकल्पिक उपचार उपलब्ध हैं।

चिकित्सक रश्मि बताती है कि करीब 30 प्रतिशत मामलों में प्रभावित व्यक्ति का विटिलिगो का परिवारिक इतिहास (जैसे चाची, चाचा, चचेरे भाई, दादाजी) होने का पता चलता है। विटिलिगो से प्रभावित व्यक्तियों के बच्चों में विटिलिगो विकसित होने का खतरा लगभग 5 प्रतिशत माना जाता है। हालांकि, यह स्थिति आमतौर पर शारीरिक रूप से दर्दनाक नहीं होती है। लेकिन इसके मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक प्रभावों ज्यादा दिखाई देते है। यह विशेष रूप से बच्चों और गहरे रंग की त्वचा वाले लोगों के लिए ज्यादा खतरनाक हो सकता है।

उन्होंने सबसे पहले इसके उपचार पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी, जो कि हमारे देश में अभी तक गलत तरीके से, झोलछाप तरीकों के द्वारा किया जाता है, केवल एक योग्य त्वचा विशेषज्ञ के उपचार पर ही विश्वास किया जाना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण यह बात है कि उपचार के दौरान इसमें परिवार के सभी लोगों को सहायक होना चाहिए।

एम्स के त्वचा विज्ञान विभाग और वेनेरोलॉजी विभाग के सहायक प्रोफेसर, डॉ. सोमेश गुप्ता ने बताया "विटिलिगो त्वचा पर एक सफेद धब्बा है, वही दिमाग पर एक गहरा निशान भी। पीड़ितों में डिप्रेशन, नींद की परेशानी, आत्महत्या करने के विचार, आत्महत्या के प्रयास, आपसी संबंधों में कठिनाइयां और सामाजिक परिस्थितियों में पीड़ित व्यक्तियों से दूरी बनाने जैसी घटनाओं के बारे में सूचना रिपोर्ट की गई है, जिनमें वयस्क होने से पहले विटिलिगो के लक्षण विकसित हुए थे।"

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