नई दिल्ली: शनिवार यानि 1 दिसंबर को वर्ल्ड एड्स डे 2018 पूरे दुनिया में मनाया जाएगा। इस बार पूरी दुनिया 30वां वर्ल्ड एड्स डे मनाने जा रही है। हर साल 1 दिसंबर को यह दिवस मनाने के पीछे एक मात्र उद्देश्य है इस बीमारी को लेकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरुक करना साथ ही इस बीमारी को लेकर जो गलतफहमी लोगों के बीच है उसे दूर करना। आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से इस बीमारी के इतिहास को लेकर कई खुलासे करेंगे। आज हम आपको बताएंगे आखिर एचआईवी और एड्स का असली इतिहास क्या है साथ ही यह किस साल में एक बड़ी बीमारी या यू कहें महामारी के रूप में उभरी।
क्या कहता है रिसर्च
1982 में साउथर्न कैलिफोर्नियां की सीडीसी ने एक रिसर्च में लिखा कि कैलिफोर्नियां के बाहर रहने वाला एक व्यक्ति को कैंसर था और इस कैंसर की जांच की गई तो पता चला इस व्यक्ति को कपोस सरकोमा कैंसर है। और इसी कैंसर में ही एचआईवी वायरस पहली बार पाया गया। फेमस मैगजीन सैन फ्रांसीसको क्रोनिकल के पत्रकार रैंडी स्लीट ने अपनी किताब 'द बैंड प्लेड ऑन न' अपनी किताब में इस महामारी का जिक्र करते हुए 'पेशेंट जीरो' शब्द का उल्लेख किया है।साइंस जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है वैज्ञानिकों ने वायरस के जैनेटिक कोड के नमूनों का विश्लेषण किया। प्रमाणों में इसकी उत्पत्ति किन्शासा में होने का पता चला है।
रिपोर्ट के मुताबिक तेज़ी से बढ़ती वेश्यावृत्ति, आबादी और दवाखानों में संक्रमित सुइयों का उपयोग संभवत इस वायरस के फैलने का कारण बना। दुनिया भर की नज़रों में एचआईवी 1980 के दशक में आया था और क़रीब साढ़े सात करोड़ लोग एचआईवी से ग्रस्त हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक एचआईवी चिंपैज़ी वायरस का परिवर्तित रूप है, यह सिमियन इम्युनोडिफिसिएंसी वायरस के नाम से भी जाना जाता है। किन्शासा बुशमीट का बड़ा बाज़ार था और संभवत संक्रमित खून के संपर्क में आने से यह मनुष्यों तक पहुंचा। वायरस कई तरीके से फैला। इन वायरस ने चिंपैंज़ी, गोरिल्ला, बंदर और फिर मनुष्यों को अपने प्रभाव में लिया। मसलन, एचआईवी-1 सबग्रुप ओ ने कैमरून में लाखों लोगों को संक्रमित किया। एचआईवी-1 सबग्रुप एम दुनिया के हर हिस्से में फैला और लाखों लोगों को अपनी गिरफ़्त में लिया। 1920 के दशक तक किन्शासा बेल्जियन कॉन्गो का हिस्सा था और 1966 तक इसे लियोपोल्डविले कहा जाता था।
एड्स को लेकर जो भी आंदोलन हुए वह सिर्फ न्यूयार्क, केलीफॉर्नियां और वॉशिंगटन डीसी, क्या ये सच है?
एचआईवी-एड्स एक्सपर्ट डेविड रोमन के मुताबिक 1983 बिल ऑफ राइट्स के वक्त ही कई एक्टिविस्ट, हेल्थ केयर विशेषज्ञ खासकर डैन टर्नर जो खुद एड्स से पीड़ित थे उन्होंने इस बीमारी को लेकर आवाज उठाई सिर्फ इतना ही नहीं एक पोस्टर भी बनाया और पोस्टर ब्वॉय और कोई नहीं बल्कि बॉबी कैंपबेल थे जिन्हे खुद सरकोमा कैंसर था। आपको जानकर हैरानी होगी कि इन दोनों की मौत एड्स की वजह से ही हुई थी। इन लोगों ने इस बीमारी से हो रही मौत के तरफ लोगों का ध्यान खींचा। अपनी परेशानियों को लोगों तक पहुंचाया। तभी इस महामारी के तरफ सरकार और लोगों का ध्यान गया। Danny Sotomayor जो दुनिया के पहले lgbt क्लब के मेंबर थे। Sotomayor की मौत भी एड्स से ही हुई थी। और इन्होंने भी इस बीमारी के खिलाफ हो रही मुहिम में जमकर हिस्सा लिया।
क्या एड्स अब महामारी नहीं रहा?
आज के समय में भी एड्स से मरने वालों की संख्या इन देशों और क्षेत्र में ज्यादा है जैसे इस्टर्न यूरोप और सेंट्रल एशिया, मीडिल इस्ट, और नॉर्थ अफ्रीका। UNAIDS अगस्त 2018 के रिपोर्ट्स के मुताबिक इस्टर्न यूरोप-सेंट्रल एशिया के देशों में नया एचआईवी इंफेक्शन पाए गए है। और आपको जानकारी हैरानी होगी कि 2017 में इसका आंकड़ा 60,000 में 2000 लोगों को था वहीं 2018 में यह आंकड़ा दोगुना हो गया है। रूस एक ऐसा देश है जहां एचआईवी मरीज की संख्या सबसे ज्यादा है। या यूं कहे कि इस क्षेत्र के 70% लोग इस बीमारी के शिकार हैं। रूस में एचआईवी का पहला केस मॉस्को में पाया गया था। और 2017 में 39 % ऐसे लोगों का पता चला जिनकी शारीरिक जांच के बाद पता चला कि ये एड्स के शिकार हैं। और सबसे खास बात यह थी कि इनमें से ज्यादातर वैसे लोग थे जो ड्रग्स लेते थे। साउथ अमेरिका में भी एड्स के कई मामले सामने आए।