हेल्थ डेस्क: जब किसी व्यक्ति की सामान्य जीवनशैली में बदलाव होने लगे, परेशानियां खड़ी होने लगे और उसका कारण व्यक्ति की मानसिक दुर्बलता हो तो इस स्थिति को डिप्रेशन कहते हैं। कई लोग इसे मन का वहम समझते हैं, लेकिन असलियत यह है कि यह एक मानसिक रोग है।
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डिप्रेशन में होने के बाद अधिकतर लोग मादक पदार्शों की लत में पड़ जाते है। जो कि उनके लिए नुकसानदेय साबित हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार डिप्रेशन के समय मादक पदार्थों का सेवन करने से वह और डिप्रेस हो जाते है।
अवसाद के दौरान शराब व अन्य मादक पदार्थो का सेवन करने से समस्या से निजात नहीं मिलती, बल्कि वह और बद्तर होती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह नई जानकारी दी है।
अवसादग्रस्त लोग अपनी बीमारी के लक्षणों से निजात पाने के लिए मादक पदार्थो का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन अवसाद के लिए मादक पदार्थ एक तरीके से ईंधन का काम करता है और यह रोगी की हालत को और खराब कर देता है।
जेपी हॉस्पिटल नोएडा में विहेवियरल मेडिसिन डिपार्टमेंट में वरिष्ठ परामर्शदाता मृण्मय कुमार दास ने कहा, "मादक पदार्थ अवसाद को और बद्तर बनाते हैं और उनपर निर्भरता बढ़ने की नौबत आ जाती है। ऐसी स्थिति में अवसाद से पीड़ित लोगों में यह आत्महत्या तथा खुद को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति में इजाफा कर सकता है। ऐसे लोगों पर स्तरीय इलाज का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और उनके स्वस्थ होने में काफी वक्त लग जाता है।"
अवसादग्रस्त व्यक्ति द्वारा मादक पदार्थो का सेवन चिकित्सकों को समस्या की जड़ तक पहुंचने में दिक्कत पैदा करता है।
नई दिल्ली स्थित सरोज सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में मेंटल हेल्थ एंड विहेवियरल साइंसेज विभाग में परामर्शदाता संदीप गोविल ने कहा, "हमारे शरीर में स्वाभाविक तौर पर पाया जाने वाला न्यूरोट्रांसमीटर (डोपामिन) होता है, जो पूरे मस्तिष्क व शरीर में रिसेप्टरों से जुड़ा होता है और दर्द पर नियंत्रण करने, हॉर्मोन का स्रवन करने तथा व्यक्ति को अच्छा महसूस कराने में अपनी भूमिका निभाता है।"
गोविल ने कहा, "जब मादक पदार्थो का लंबे वक्त तक इस्तेमाल किया जाता है और मस्तिष्क ज्यादा से ज्यादा मात्रा में डोपामिन का स्रवन करता है, तो अवसाद की समस्या और गंभीर हो जाती है और पीड़ित अजीबोगरीब व्यवहार करने लग जाता है।"
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा हाल में प्रकाशित 'डिप्रेशन एंड अदर कॉमन मेंटल डिसॉर्डर' नामक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में 32.2 करोड़ लोग अवसादग्रस्त हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कुल आबादी का लगभग 4.5 फीसदी लोग अवसादग्रस्त हैं।
सामान्यतया अवसाद के मूल लक्षणों में एक खुद को अच्छा महसूस न करना है। अवसादग्रस्त लोग अपने पसंदीदा कार्यो में दिलचस्पी नहीं लेते हैं, थका-थका महसूस करते हैं और ज्यादा से ज्यादा सोते हैं।
अवसादग्रस्त लोगों का हाजमा भी अक्सर खराब रहता है, जिसके कारण वजन में अवांछित कमी आती है। साथ ही उनके मन में हीन भावना, निराशा तथा खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं और खुदकुशी जैसा आत्मघाती कदम उठा लेते हैं।
वैसे लोग जो अवसादग्रस्त हैं और मादक पदार्थो का सेवन कर रहे होते हैं, ऐसे में अचानक मादक पदार्थो का सेवन बंद करने से भी समस्या बढ़ जाती है।
ऐसी स्थिति में चिकित्सा के साथ ही सीमित मात्रा में मादक पदार्थ लेते रहने की जरूरत पड़ती है।
अवसाद तथा अन्य मानसिक समस्याओं पर खुलकर बात करने से समस्या की पहचान करने तथा उनका इलाज करने में मदद मिलती है।
द जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ इंडिया के उप निदेशक व शोध प्रमुख पल्लब मौलिक ने कहा, "लोगों को चिकित्सकों से अपनी समस्याओं पर खुलकर बात करनी चाहिए। शुरुआती दौर में चिकित्सा आसान है और दवा की जरूरत नहीं होती और साधारण काउंसेलिंग से इसका इलाज संभव है।"
शोध में यह बात सामने आई है कि भारत जैसे देश में मानसिक रोगों से पीड़ित 27 में से एक व्यक्ति इलाज के लिए चिकित्सक के पास पहुंचता है।
नई दिल्ली के श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट के कंसल्टैंट साइकेट्रिस्ट प्रशांत गोयल ने कहा, "शरीर की अन्य बीमारियों की अपेक्षा अवसाद में चिकित्सकीय इलाज के अलावा, परिवार के समर्थन की बेहद अहमियत होती है।"