Monday, December 23, 2024
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इन स्टूडेंट्स ने बनाया इको-फ्रेंडली सैनेटरी पैड, ऐसे आया आइडिया, मिला ये ईनाम

कचड़ा प्रोडेक्ट' के द्वारा चलाएं जा रहे है 'periodofchange' कैंपेन के अनुसार हर महिला साल भर में कम से कम 150 किलो मेन्सट्रअल वेस्ट प्रोड्यूस्ड होता है। ये नॉन-बायोडिग्रेडेबल होते हैं। इसी को ध्यान में रखकर बनाएं ऐसे पैड्स...

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : December 22, 2017 18:45 IST
Menstrual
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हेल्थ डेस्क: ऐसा देश जहां पर महिलाएं पीरियड्स के समय सबसे कम सैनेटरी पैड्स का इस्तेमाल करती है। यह एक विडंबना है कि सैनिटरी नैपकिन किलो-लोड गैर-अपर्याप्त कचरे उत्पन्न करते हैं जो कि हमारे पर्यावरण को प्रदूषित करता है। मासिक धर्म प्रदूषण एक सबसे बड़ा कारण प्रदूषण का बनकर सामने आ रहा है। जिसके कारण कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

 

एसी नीलसन की रिपोर्ट के अनुसार 355 मिलियन यानी कि 12 प्रतिशत महिलाएं ही पीरियड्स के समय सैनेटरी पैड्स का इस्तेमाल करती है। जो बची महिलाएं है वो गंदे कपड़े, न्यूज पेपर, पत्तियां या भूसी रेत का यूज करती है। जो कि उसकी हेल्थ के लिए बहुत ही हानिकारक है

इस कैंपेन को याद रख आया ये आइडिया

'कचड़ा प्रोडेक्ट' के द्वारा चलाएं जा रहे है  'periodofchange' कैंपेन के अनुसार हर महिला साल भर में कम से कम 150 किलो  मेन्सट्रअल वेस्ट प्रोड्यूस्ड होता है। ये नॉन-बायोडिग्रेडेबल होते हैं और जैसा कि ज़्यादातर नैपकिन्स में प्लास्टिक मौजूद होता है, क्योंकि 90 प्रतिशत नैपकीन प्लास्टिक की होती है। जो कि वातावरण के लिए नुकदानदेय होता है। इसी के चलते  Kumaraguru College of Technology (KCT) के कुछ स्टूडेंट्स से एक पहल की।

इस कॉलेज के है स्टूडेंट्स
कॉलेज के फैशन टेक्नॉलजी के दो स्टूडेंट्स Niveda R और Gowtham S ने इको-फ्रेंडली सैनेटरी पैड बनाया है। वातावरण को नुकसान से बचाने की परेशानी को दिमाग में रखते हुए इन दो स्टूडेंट्स ने ऐसे पैड्स बनाएं है।

kct students

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मिला ये प्राइज
ऐसे इंको फैंडली पैड्स बनाने के कारण इन दोनों स्टूडेंट्स को छात्र विश्वकर्मा पुरस्कार और भारत अभिनव पहल 2017 अवार्ड और 75,000 रुपए कैश प्राइज़ से भी नवाजा जा चुका है।

इस पेड़ को भारत के 12 प्रदेश में उगाया जाएगा।

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