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बड़ी सी बड़ी बीमारी में कारगर है दूब, जानिए कैसे

पूजा में भगवान गणेश को अर्पित की जाने वाली कोमल दूब को आयुर्वेद में महाऔषधि माना जाता है। पौष्टिक आहार तथा औषधीय गुणों से भरपूर दुर्वा यानी दूब को हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकांडों में उपयोग के साथ ही यौन रोगों, लीवर रोगों, कब्ज के उपचार में रामबाण मान

Edited by: IANS
Published on: March 04, 2018 17:17 IST
दूब- India TV Hindi
दूब

हेल्थ डेस्क: पूजा में भगवान गणेश को अर्पित की जाने वाली कोमल दूब को आयुर्वेद में महाऔषधि माना जाता है। पौष्टिक आहार तथा औषधीय गुणों से भरपूर दुर्वा यानी दूब को हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकांडों में उपयोग के साथ ही यौन रोगों, लीवर रोगों, कब्ज के उपचार में रामबाण माना जाता है। पतंजलि आयुर्वेद हरिद्वार के आचार्य बाल कृष्ण ने कहा कि दूब की जड़ें, तना, पत्तियां सभी को आयुर्वेद में अनेक असाध्य रोगों के उपचार के लिए सदियों से उपयोग में लाया जा रहा है। 

आयुर्वेद के अनुसार चमत्कारी वनस्पति दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, फाइबर, पोटाशियम पर्याप्त मात्रा में विद्यमान होते हैं जोकि विभिन्न प्रकार के पित्त एवं कब्ज विकारों को दूर करने में राम बाण का काम करते हैं। यह पेट के रोगों, यौन रोगों, लीवर रोगों के लिए असरदार मानी जाती है। 

पतंजलि आयुर्वेद हरिद्वार के आचार्य बालकृष्ण के अनुसार शिर-शूल में दूब तथा चूने को समान मात्रा में लेकर पानी में पीसें और इसे ललाट पर लेप करने से लाभ होता है। इसी तरह दूब को पीसकर पलकों पर बांधने से नेत्र रोगों में लाभ होता है, नेत्र मल का आना भी बंद होता जाता है।

उन्होंने कहा कि अनार पुष्प स्वरस को दूब के रस के साथ अथवा हरड़ के साथ मिश्रित कर 1-2 बूंद नाक में डालने से नकसीर में आराम मिलता है। दुर्वा पंचाग स्वरस का नस्य लेने से नकसीर में लाभ होता है। दूर्वा स्वरस को 1 से 2 बूंद नाक में डालने से नाक से खून आना बंद हो जाता है।

बालकृष्ण ने कहा कि दूर्वा क्वाथ से कुल्ले करने से मुंह के छालों में लाभ होता है। इसी तरह उदर रोग में 5 मिली दूब का रस पिलाने से उल्टी में लाभ होता है। दूब का ताजा रस पुराने अतिसार और पतले अतिसारों में उपयोगी होता है। दूब को सोंठ और सांैफ के साथ उबालकर पिलाने से आम अतिसार मिटता है।

गुदा रोग में भी दूब लाभकारी है। दूर्वा पंचांग को पीसकर दही में मिलाकर लें और इसके पत्तों को पीसकर बवासीर पर लेप करने से लाभ होता है। इसी तरह घृत को दूब स्वरस में भली-भांति मिला कर अर्श के अंकुरों पर लेप करें साथ ही शीतल चिकित्सा करें, रक्तस्त्राव शीघ्र रुक जाएगा। दूब को 30 मिली पानी में पीसें तथा इसमें मिश्री मिलाकर सुबह-शाम पीने से पथरी में लाभ होता है।

उन्होंने कहा कि दूब की मूल का क्वाथ बनाकर 10 से 30 मिली मात्रा में पीने से वस्तिशोथ, सूजाक और मूत्रदाह का शमन होता है। दूब को मिश्री के साथ घोंट छान कर पिलाने से पेशाब के साथ खून आना बंद हो जाता है। 1 से 2 ग्राम दूर्वा को दुध में पीस छानकर पिलाने से मूत्रदाह मिटती है। 

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