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श्रीदेवी को हमसे छीनने वाली बीमारी कार्डियक अरेस्ट क्या है? इससे कैसे बचें ?

बॉलीवुड की 'हवा हवाई' एक्ट्रेस श्री देवी का कल बीती रात दुबई में निधन हो गया। सबसे हैरानी की बात यह है कि इतनी फिट लगने वाली श्री देवी की मौत कार्डिक अरेस्ट की वजह से हुई। बता दें कि श्री देवी महज अभी सिर्फ 54 साल की थी और अचानक से कार्डिक अरेस्ट की

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: February 26, 2018 15:22 IST
sridevi- India TV Hindi
Image Source : PTI sridevi

हेल्थ डेस्क: बॉलीवुड की 'हवा हवाई' एक्ट्रेस श्री देवी का कल बीती रात दुबई में निधन हो गया। सबसे हैरानी की बात यह है कि इतनी फिट लगने वाली श्री देवी की मौत कार्डिक अरेस्ट की वजह से हुई। बता दें कि श्री देवी महज अभी सिर्फ 54 साल की थी और अचानक से कार्डिक अरेस्ट की मौत की खबर सुनकर उनके फैंस से लेकर पूरा बॉलीवुड सदमें है।

लोग हृदय में उलझते हैं, वे हृदय की शब्दावली में भी उलझ रहे हैं। ऐसे मेें कुछ बातों से अवगत कराना आवश्यक हो जाता है। श्रीदेवी की कार्डिक अरेस्ट की वजह से मौत होने की वजह से आज आपको इससे जुड़ी कुछ खास बात बताने जा रहे हैं। हृदय-रोग-विशेषज्ञ कार्डिक अरेस्ट के लिए इन शब्दों का करते हैं: मायोकार्डियल इन्फार्क्शन , एंजायना पेक्टोरिस , एरिद्मिया और कार्डियल एरेस्ट।

sri devi

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अब हम इन चारों पर बात और साथ-साथ कुछ आम अस्पष्ट शब्दों पर भी बात करेंगे। मनुष्य के पास एक ह्रदय है, जो एक मांस का लोथड़ा है। खोखला है। जीवन भर धड़कता है। शरीर से आते ख़ून से भरता है, शरीर को फिर ख़ून फेंकता है। लेकिन इस मज़दूर को भी ख़ुराक चाहिए। नहीं तो यह भी कमज़ोर हो सकता है। घायल हो सकता है। मर भी सकता है। 

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सबको ख़ून देने वाले हृदय में ख़ून देने वाली तीन धमनियां हैं, जिन्हें कोरोनरी धमनियां कहा जाता है। इन धमनियों में अगर रक्तप्रवाह आधा-अधूरा या पूरा अवरुद्ध होगा तो हृदय के लिए समस्याएं पैदा हो जाएगा। ये समस्याएं ही ऊपर के चिकित्सकीय नामों में आपको बताई गयी हैं। 

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कोई धमनी पूरी तरह खून के थक्के से बन्द हो जाए, तो जिस हिस्से में वह खून पहुंचाती हो, वह मर जाए। हृदय का उतना मांस मृत हो जाता है। यह मायोकार्डियल इन्फार्क्शन होता है। इसे आम भाषा में जनता कई बार हार्ट-अटैक कह देती है। 

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अगर यह अवरोध का आधा-अधूरा हुआ तो हो सकता है कि दर्द चलने या काम करने में कई तरह की तकलीफ हो जाए  लेकिन आराम करने पर न हो। यह स्थिति एंजायना पेक्टोरिस कहलाती है। एंजायना यानी दर्द , चाहे वह कहीं का भी हो। पेक्टोरिस यानी छाती का।  तो इस तरह एंजायना पेक्टोरिस छाती में हृदय के कारण उठने वाले उस दर्द को कहा जाने लगा, जो मायोकार्डियल इन्फार्क्शन से कुछ कमतर है। स्टेबल एंजायना एंजायना का पहला प्रकार है , जो काम करने पर या तनाव पर उठता है और कुछ देर में आराम करने पर मिट जाता है।

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एन्जायनारोधक दवाओं से इसमें आराम पड़ जाता है। लेकिन फिर एंजायना के और प्रकार भी हैं। कई बार यह दर्द बैठे-बैठे बिना कोई काम किये या बिना तनाव के हो गया। सामान्य एंजायना से यह दर्द कुछ लम्बा खिंच गया। या फिर एन्जाइनरोधक दवाओं से नहीं गया। इस तरह के एंजायना को अनस्टेबल एंजायना कहा जाता है। या फिर कोरोनरी बन्द न हुई हो , सिकुड़ गयी हो।

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अब इस प्रकार के एंजायना को प्रिंज़मेटल एंजायना कहा जाता है। या ऐसा भी हो सकता है कि कोरोनरी में ख़ून का रुकाव हो , लेकिन दर्द न हो। व्यक्ति को पता ही न चले। या मामूली उलझन-भर हो। या सिर्फ़ घबराहट। यह स्थिति सायलेंट एंजायना कहलाती है। डायबिटीज़ में ऐसी कई मौतों से डॉक्टर रोज़ जूझते हैं। 

अब आइए कार्डियक एरेस्ट पर। कार्डियक एरेस्ट यानी हृदय का रुकना। हृदय धड़कते-धड़कते कब रुकेगा। जब उसकी इतनी मांसपेशी को ख़ून न मिले कि वह बिना ऑक्सीजन मर जाए। लेकिन फिर कई बार स्वस्थ हृदय भी ख़ून में तमाम रसायनों-तत्त्वों के बढ़ने-घटने से रुक सकता है। मांसपेशी ठीक है , लेकिन खून का पर्यावरण गड़बड़ है। ऐसा कैसे होगा इसके लिए एरिद्मिया को ध्यान में रखनी ज़रूरी होता है। ( इसी कार्डियक एरेस्ट को साधारण लोग हार्ट फ़ेल होना भी कह देते हैं। )

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हृदय मांसपेशी है। उसमें एक बिजली की लहरदार कौंध उठती है , तो वह धड़कता हुआ जिस्म में ख़ून फेंकता है। इस धड़कन का एक नियम , एक क्रम है। यही क्रम आपको ईसीजी में दिखता है। अब चाहे हृदय को ख़ून ढंग से न मिले और चाहे ख़ून में कोई गड़बड़ हो जाए, उसके धड़कन अनियमित हो सकती है। वह मरा नहीं है , लेकिन वह रुक सकता है।

वह अभी जीवित है , लेकिन आराम करने लग गया। लेकिन उसके आराम ने मनुष्य की जान ले ली। यही कार्डियक एरेस्ट है। कई बार यह रुका हृदय दोबारा चल पड़ता है , कई बार कभी नहीं चलता। लेकिन अगर रुका हृदय दोबारा चला पर देर से चला , तो तब तक मस्तिष्क मर गया। अब यह मरा मस्तिष्क लेकिन चलता हृदय लिये व्यक्ति भला किस काम का ! यही ब्रेन-डेथ की स्थिति है। 

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