उन्होंने बताया कि इस बीमारी से पीड़ित लोगों को इनहेल प्रयोग करने की सलाह दी जाती है, जिससे सांस का मार्ग खुल जाता है और हवा अच्छी तरह से अंदर जा सकती है। फेफड़ों की सूजन कम करने और संक्रमण फैलने से रोकने लिए मुंह से लेने वाली दवाएं दी जाती हैं
डॉ. एस.एस. अग्रवाल ने कहा कि गंभीर हालत में इंजेक्शन, नेब्यूलाइजर, ऑक्सीजन थेरेपी और मास्क या एंडोट्रेचियल ट्यूब से सांस लेने में सहयोग जैसे इलाज की सलाह दी जाती है। बीमारी के असर को कम करने के लिए मेडिकल सेवाएं उपलब्ध हैं, लेकिन बचाव किसी भी तरह के इलाज से बेहतर है और धूम्रपान छोड़ना सबसे बड़ी समझदारी की बात है।
लक्षण
- सांस का टूटना या बिल्कुल सांस ना ले पाना
- छाती में जकड़न
- घबराहट
- बलगम वाली खांसी
- गले में अत्यधिक चिपचिपाहट
- बलगम
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