हेल्थ डेस्क: याद है हमें आज भी वो बचपन की दिवाली...इंतज़ार... चाचा चाची का घर आना...सब भाई बहनों का मिल यूँ हॅसते हुए खेलना... लज़ीज़ पकवानों की ख़ुशबू... दोपहर में कुम्हार चचा का टोकरी भर दियळी का लिए यूँ घर आना... और उसके बदले पैसे अनाज मिठाईया, लेकर आशीष देते हुए लौट जाना... शाम को हम बच्चो को मुर्गा छाप, बिजली बम, रॉकेट, और घर के सबसे छोटों के छुरछुरिया लाने के लिए सिर्फ 10 -10 रुपये का मिलना... हम खुश रहते उतने में ही...याद हैं हमें वो दिवाली की अमावस की काली रात में लाइट का ना होना...फिर कुम्हार चचा के दीयों का हम सब बच्चे बड़ों का मिलकर पूरे घर छतों को सजाना... सिर्फ यही दिन होता था साल में जब हम बड़े-छोटे मिलकर कोई काम करते थे... और हां जब हाथों से तेल से भरे दिए टूट जाते थे... तब भी कोई डाटता नहीं था ... फिर उन्ही दियों से पटाखे, छुरछुरिया का जलाना... लक्ष्मी- गणेश की पूजा फिर हम भाई बहनों का मिलकर विद्या को जगाने के लिए लालटेन के सामने झूठमूठ का पढ़ना।
आज पैसे भी बहुत हैं... लाइटे भी हैं झालर हैं ... होटल से आने वाले पकवान भी हैं... सबकुछ हैं... पर ऐसा लगता कुछ भी नहीं हैं... कुछ अपना सा नहीं लगता... ना जाने क्यों सब नकली सा जान पड़ता हैं... इस चकाचौंध भरी दिवाली में बाहर तो अमावस की रात नज़र नहीं आती पर दिल में अमावस सा अँधेरा छाया है... ये रौशनियां... ये बिजलिया क्यों नहीं एहसास करा पाते उजाले की... क्यों याद आती हैं वो गरीबी में बीती खुशिया, क्यों याद आता कुम्हार चचा की दियळी का मिल पूरे परिवार का साथ जलाना... इस दिवाली मैं छोड़ दूंगा पैसों से खरीदीं नकली चीज़ों को, लाऊंगा चचा के दीयों को... जीने की कोशिश करूँगा उस दौर को जब हम सिर्फ दिवाली अकेले नहीं मिलकर मनाते थे उनमे सब होते... घर, बच्चे, बड़े, बूढ़े और पड़ोस... और हां चचा के हाथों से बने मिट्ठी के दिए...दिवाली मनाइये... औरों को भी मनाने में मदद करे... तब होगी आपकी असली दिवाली...
दिवाली में पटाखों की धूम नहीं हो तो शायद कुछ कमी सी लगती है, लेकिन अगर पटाखें हमारे स्वास्थ्य को नुकसान व पर्यावरण को हानि पहुंचा रहे हैं तो हमें इनके इस्तेमाल के बारे में सही से सोचने की जरूरत है।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने हाल के फैसले में पटाखों का प्रयोग करने की इजाजत दिवाली की रात आठ से 10 बजे के बीच दे दी। इस दौरान दिल्ली व दूसरे महानगरों में प्रदूषण का स्तर निश्चित ही बढ़ा रहेगा। दिवाली की धूम-धड़ाम के बीच स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से अपने को किस तरह से बचें व पटाखों से किस तरह बुजुर्ग व बीमार लोग अपनी स्वास्थ्य की देखभाल करें।
जेपी हॉस्पिटल के पल्मोनरी व क्रिटिकल केयर मेडिसिन के वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ. ज्ञानेंद्र अग्रवाल ने यह पूछने पर कि दमा के मरीज या आम व्यक्तियों पर पटाखों के धुएं का असर कैसे होता है? डॉ. अग्रवाल ने कहा कि रोशनी का त्योहार दिवाली अपने साथ बहुत सारी खुशियां लेकर आता है, लेकिन दमा, सीओपीडी या एलर्जिक रहाइनिटिस से पीड़ित मरीजों की समस्या इन दिनों बढ़ जाती है। पटाखों में मौजूद छोटे कण सेहत पर बुरा असर डालते हैं, जिसका असर फेफड़ों पर पड़ता है।
इस तरह से पटाखों के धुंए से फेफड़ों में सूजन आ सकती है, जिससे फेफड़े अपना काम ठीक से नहीं कर पाते और हालात यहां तक भी पहुंच सकते हैं कि ऑर्गेन फेलियर और मौत तक हो सकती है। ऐसे में धुएं से बचने की कोशिश करें।
डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि पटाखों के धुएं की वजह से अस्थमा या दमा का अटैक आ सकता है। हानिकारक विषाक्त कणों के फेफड़ों में पहुंचने से ऐसा हो सकता है, जिससे व्यक्ति को जान का खतरा भी हो सकता है। ऐसे में जिन लोगों को सांस की समस्याएं हों, उन्हें अपने आप को प्रदूषित हवा से बचा कर रखना चाहिए।
पटाखों के धुएं से हार्टअटैक और स्ट्रोक का खतरा भी पैदा हो सकता है। पटाखों में मौजूद लैड सेहत के लिए खतरनाक है, इसके कारण हार्टअटैक और स्ट्रोक की आशंका बढ़ जाती है। जब पटाखों से निकलने वाला धुंआ सांस के साथ शरीर में जाता है तो खून के प्रवाह में रुकावट आने लगती है। दिमाग को पर्याप्त मात्रा में खून न पहुंचने के कारण व्यक्ति स्ट्रोक का शिकार हो सकता है।
डॉ. ज्ञानेंद्र अग्रवाल कहते हैं कि बच्चे और गर्भवती महिलाओं को पटाखों के शोर व धुएं से बचकर रहना चाहिए। पटाखों से निकला गाढ़ा धुआं खासतौर पर छोटे बच्चों में सांस की समस्याएं पैदा करता है। पटाखों में हानिकर रसायन होते हैं, जिनके कारण बच्चों के शरीर में टॉक्सिन्स का स्तर बढ़ जाता है और उनके विकास में रुकावट पैदा करता है। पटाखों के धुंऐ से गर्भपात की संभावना भी बढ़ जाती है, इसलिए गर्भवती महिलाओं को भी ऐसे समय में घर पर ही रहना चाहिए।
डॉ. अग्रवाल बताते हैं कि पटाखे को रंग-बिरंगा बनाने के लिए इनमें रेडियोएक्टिव और जहरीले पदार्थों का इस्तेमाल किया जात है। ये पदार्थ जहां एक ओर हवा को प्रदूषित करते हैं, वहीं दूसरी ओर इनसे कैंसर की आशंका भी रहती है।
उन्होंने कहा कि धुएं से दिवाली के दौरान हवा में पीएम बढ़ जाता है। जब लोग इन प्रदूषकों के संपर्क में आते हैं तो उन्हें आंख, नाक और गले की समस्याएं हो सकती हैं। पटाखों का धुआं, सर्दी जुकाम और एलर्जी का काररण बन सकता है और इस कारण छाती व गले में कन्जेशन भी हो सकता है।
यह पूछे जाने पर कि पटाखों के जलने से किस तरह की गैसें पैदा होती हैं? डॉ. अग्रवाल ने कहा कि दिवाली के दौरान पटाखों के कारण हवा में प्रदूषण बढ़ जाता है। धूल के कणों पर कॉपर, जिंक, सोडियम, लैड, मैग्निशियम, कैडमियम, सल्फर ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जमा हो जाते हैं। इन गैसों के हानिकारक प्रभाव होते हैं। इसमें कॉपर से सांस की समस्याएं, कैडमियम-खून की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम करता है, जिससे व्यक्ति एनिमिया का शिकार हो सकता है। जिंक की वजह से उल्टी व बुखार व लेड से तंत्रिका प्रणाली को नुकसान पहुंचता है। मैग्निशियम व सोडियम भी सेहत के लिए हानिकारक है।
दिवाली के दौरान पटाखों व प्रदूषण को लेकर बीमार व्यक्तियों को क्या सावधानी बरतनी चाहिए? इस पर डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि छोटे बच्चों, बुजुर्गों और बीमार लोगों को अपने आप को बचा कर रखना चाहिए। दिल के मरीजों को भी पटाखों से बचकर रहना चाहिए। इनके फेफड़ें बहुत नाजुक होते हैं। कई बार बुजुर्ग और बीमार व्यक्ति पटाखों के शोर के कारण दिल के दौरे का शिकार हो जाते हैं। कुछ लोग तो शॉक लगने के कारण मर भी सकते हैं। छोटे बच्चे, मासूम जानवर और पक्षी भी पटाखों की तेज आवाज से डर जाते हैं। पटाखे बीमार लोगों, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए खतरनाक हैं।
यह पूछे जाने पर कि पटाखे आवाज और धुआं भी पैदा करते हैं? इनसे ध्वनि प्रदूषण होता है, इससे बचने के लिए क्या करना चाहिए? इस पर अग्रवाल कहते हैं कि शोर का मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। शोर या आवाज हवा से फैलती है। इसे डेसिबल में नापा जाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि 100 डेसिबल से ज्यादा आवाज का बुरा असर हमारी सुनने की क्षमता पर पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शहरों के लिए 45 डेसिबल की आवाज अनुकूल है। लेकिन भारत के बड़े शहरों में शोर का स्तर 90 डेसिबल से भी अधिक है। मनुष्य के लिए उचित स्तर 85 डेसिबल तक ही माना गया है। अनचाही आवाज मनुष्य पर मनोवैज्ञानिक असर पैदा करती है।
उन्होंने कहा कि शोर तनाव, अवसाद, उच्च रक्तपचाप, सुनने में परेशानी, टिन्नीटस, नींद में परेशानी आदि का कारण बन सकता है। तनाव और उच्च रक्तचाप सेहत के लिए घातक है, वहीं टिन्नीटस के कारण व्यक्ति की याददाश्त जा सकती है, वह अवसाद/ डिप्रेशन का शिकार हो सकता है। ज्यादा शोर दिल की सेहत के लिए अच्छा नहीं। शोर में रहने से रक्तचाप पांच से दस गुना बढ़ जाता है और तनाव बढ़ता है। ये सभी कारक उच्च रक्तचाप और कोरोनरी आर्टरी रोगों का कारण बन सकते हैं।
ऐसे में दिवाली के दौरान पटाखों व प्रदूषण से बचने के लिए क्या सावधानियां बरतें? इस सवाल पर डॉ. अग्रवाल ने कहा कि कोशिश रहे कि पटाखें न जलाएं या कम पटाखे फोड़ें। पटाखों के जलने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड जैसी गैसें निकलती हैं जो दमा के मरीजों के लिए खतरनाक हैं। हवा में मौजूदा धुंआ बच्चों और बुजुर्गों के लिए घातक हो सकता है।
उन्होंने सलाह दी कि प्रदूषित हवा से बचें, क्योंकि यह तनाव और एलर्जी का कारण बन सकती है। एलर्जी से बचने के लिए अपने मुंह को रूमाल या कपड़े से ढक लें। दमा आदि के मरीज अपना इन्हेलर अपने साथ रखें। अगर आपको सांस लेने में परेशानी हो तो तुरंत इसका इस्तेमाल करें और इसके बाद डॉक्टर की सलाह लें। त्योहारों के दौरान स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। अगर आपको किसी तरह असहजता महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।