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सर्दियों में सबसे ज्यादा बच्चों में होता है निमोनिया का खतरा, रहे सतर्क

निमोनिया असल में बैक्टीरिया, वायरस, फंगस या परजीवी से फेफड़ों में होने वाला एक किस्म का संक्रमण होता है, जो फेफड़ों में एक तरल पदार्थ जमा करके खून और ऑक्सीजन के बहाव में रुकावट पैदा करता है। बलगम वाली खांसी, सीने में दर्द, तेज बुखार और सांसों में तेज

India TV Lifestyle Desk
Updated on: November 22, 2016 19:10 IST
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हेल्थ डेस्क: जिस देश में 4 करोड़ से ज्यादा लोग निमोनिया से पीड़ित हैं, वहां पर इसकी रोकथाम और जांच के बारे में खास कर सर्दियों में सेहत के प्रति जागरूकता फैलाना बेहद आवश्यक है। इसका एक कारण यह भी है कि आम फ्लू, छाती के संक्रमण और लागातार खांसी के लक्षण इससे मेल खाते हैं।

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निमोनिया असल में बैक्टीरिया, वायरस, फंगस या परजीवी से फेफड़ों में होने वाला एक किस्म का संक्रमण होता है, जो फेफड़ों में एक तरल पदार्थ जमा करके खून और ऑक्सीजन के बहाव में रुकावट पैदा करता है। बलगम वाली खांसी, सीने में दर्द, तेज बुखार और सांसों में तेजी निमोनिया के लक्षण हैं।

अगर आपको या आपके बच्चे को फ्लू या अत्यधिक जुकाम जैसे लक्षण हैं, जो ठीक नहीं हो रहे तो तुरंत डॉक्टर के पास जाकर सीने का एक्सरे करवाएं, ताकि निमोनिया होने या न होने का पता लगाया जा सके।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया पांच साल से छोटी उम्र के बच्चों के अस्पताल में भर्ती होने व मृत्यु होने का प्रमुख कारण है।

इस बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के महासचिव डॉ के.के. अग्रवाल ने कहा, "छोटे बच्चे, नवजातों और समय पूर्व प्रसव से होने वाले बच्चे, जिनकी उम्र 24 से 59 महीने है और फेफड़े पूरी तरह विकसित नहीं हैं, हवा नली तंग है, कमजोर पौष्टिकता और रोगप्रतिरोधक प्रणाली वाले बच्चों को निमोनिया होने का ज्यादा खतरा होता है।"

उन्होंने कहा कि अस्वस्थ व अस्वच्छ वातावरण, कुपोषण और स्तनपान की कमी की वजह से निमोनिया से पीड़ित बच्चों की मौत हो सकती है, इस बारे में लोगों को जागरूक करना बेहद आवश्यक है। कई बच्चों की जान बचाई जा सकती है और यह डॉक्टरों का फर्ज है कि वे नई मांओं को अपने बच्चों को स्वस्थ रखने तथा सही समय पर वैक्सीन लगवाने के लिए बताएं।

निमोनिया कई तरीकों से फैल सकता है। वायरस और बैक्टीरीया अक्सर बच्चों के नाक या गले में पाए जाते हैं और अगर वह सांस से अंदर चले जाएं तो फेफड़ों में जा सकते हैं। वह खांसी या छींक की बूंदों से हवा नली के जरिये भी फैल सकते हैं। इसके साथ ही जन्म के समय या उसके तुरंत बाद रक्त के जरिये भी यह फैल सकता है।

वैक्सीन, उचित पौष्टिक आहार और पर्यावरण की स्वच्छता के जरिये निमोनिया रोका जा सकता है। निमोनिया के बैक्टीरिया का इलाज एंटीबायटिक से हो सकता है, लेकिन केवल एक तिहाई बच्चों को ही एंटीबायटिक्स मिल पा रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि सर्दियों में बच्चों को गर्म रखा जाए, धूप लगवाई जाए और खुले हवादार कमरों में रखा जाए। यह भी जरूरी है कि उन्हें उचित पौष्टिक आहार और आवश्यक वैक्सीन मिले।

नियूमोकोकल कोंजूगेट वैक्सीन और हायमोफील्स एनफलुएंजा टाईप बी दो प्रमुख वैक्सीन हैं, जो निमोनिया से बचाती हैं। लेकिन 70 प्रतिशत बच्चों को महंगी कीमत और जानकारी के अभाव की वजह से यह वैक्सीन लगवाई नहीं जाती। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह राष्ट्रीय स्तर पर इस वैक्सीन को बच्चों तक पहुंचाने के लिए योजना बना कर लागू करे, ताकि इस बीमारी को कम किया जा सके।

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