हेल्थ डेस्क: एक अध्ययन के अनुसार, लगभग 4.2 करोड़ भारतीयों में थायरॉइड हार्मोन का स्तर असामान्य है। यह भी संकेत दिया गया है कि दुनियाभर के थायरॉइड रोगियों में 21 प्रतिशत अकेले भारत से हैं। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में थायरॉयड विकार अधिक होते हैं।
अध्ययन में थायरॉइड विकार के मामले महिलाओं में 26 प्रतिशत और पुरुषों में महज 24 प्रतिशत मिले।
एक सामान्य व्यक्ति को रोजना औसतन 150 माइक्रोग्राम आयोडीन की जरूरत होती है। सामान्य महिलाओं की तुलना में गर्भवती महिलाओं को आयोडीन की ज्यादा जरूरत रहती है, क्योंकि आयोडीन की कमी का दुष्प्रभाव गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों दोनों पर ही पड़ता है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा, "आयोडीन थायरॉइड ग्रंथि में एकत्रित होती है और यह थायरोक्सिन (टी 3) तथा ट्राइआयोडोथारोनिन (टी 4) थायरॉइड हार्मोन्स के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है। कोशिकाओं के उचित विकास के लिए थायरॉइड हार्मोन की आवश्यकता होती है। शरीर की मैटाबोलिक दर बढ़ाने और प्रोटीन के मैटाबोलिज्म यानी चयापचय में इनकी प्रमुख भूमिका होती है। वे लंबी हड्डियों के विकास को निश्चित करते हैं और मस्तिष्क के विकास के लिए जरूरी हैं।"
उन्होंने कहा, "थायरॉइड हार्मोन कोशिकाओं में वसा और कार्बोहाइड्रेट की मेटाबोलिज्म से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। यदि गर्भवती महिलाओं के आहार में आयोडीन की कमी रह जाए तो शिशुओं व मां में गोइटर (थायरॉइड बढ़ जाना), हाइपोथायरॉयडिज्म और दिमागी कमजोरी पैदा हो सकती है।"
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि जब थायरॉयड ग्रंथि में बहुत ज्यादा हार्मोन का उत्पादन होने लगता है तो हाइपरथायरॉयडिज्म हो जाता है और जब इसका उत्पादन कम होता है, तब हाइपोथायरॉयडिज्म की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। थाइरॉइड के अन्य सामान्य विकार हैं- हाशिमोटोज डिजीज, ग्रेव्ज डिजीज, गोइटर तथा थायरॉइड नोडल्यूस।
उन्होंने आगे कहा, "गर्भधारण की योजना बना रही महिलाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गर्भवती होने से पहले ही उनके आहार में पर्याप्त मात्रा में आयोडीन शामिल रहे। गर्भावस्था और स्तनपान के समय आयेडीन की जरूरत बढ़ जाती है, ताकि पर्याप्त थायरॉइड हार्मोन बनते रहें, जो बच्चे के मस्तिष्क के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आयोडीन की जरूरतें पूरी करने के लिए स्वस्थ और विविधतापूर्ण आहार की जरूरत होती है।"
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