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आंखों में सूखेपन की बीमारी का पता लगाएगी 'नॉन इनवेसिव इमेजिंग तकनीक’

आंखों में सूखेपन की बीमारी का आसानी से पता लगाने और उसका इलाज करने के लिए शोधकर्ताओं ने नई 'नॉन इनवेसिव इमेजिंग टेकनीक’ विकसित की है।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: October 07, 2019 10:53 IST
Dry eyes- India TV Hindi
Dry eyes

आंखों में सूखेपन की बीमारी का आसानी से पता लगाने और उसका इलाज करने के लिए शोधकर्ताओं ने नई 'नॉन इनवेसिव इमेजिंग तकनीक’ विकसित की है। आंखों में सूखेपन की बीमारी(ड्राई आई सिंड्रोम) में आंखों में जलन होती है और धुंधला दिखाई देता है।

नई तकनीक (नॉन इनवेसिव इमेजिंग टेकनीक) में आंखों के भीतर की तस्वीर बिना ऊपरी परत को नुकसान पहुंचाए ली जाती है। जर्नल ऑफ एप्लाइड ऑप्टिक्स में प्रकाशित शोधपत्र के मुताबिक आंखों के डॉक्टर के पास पहुंचने वाले 60 प्रतिशत मरीजों में आंखों के सूखेपन की शिकायत होती है।

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शोधकर्ताओं जिनमें अमेरिका की ऑप्टिकल सोसाइटी के शोधकर्ता भी शामिल थे, ने बताया कि यह बीमारी तब होती है जब बाहरी वातावरण से बचाने में कारगर आंसुओं की अंदरुनी परत अस्थिर हो जाती है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि अधिकतर मामलों में इलाज मरीज की ओर से बताए गए लक्षणों के आधार पर किया जाता है लेकिन यह पद्धति बीमारी की सटीक अवस्था का पता लगाने में उतनी कारगर नहीं होती। शोधकर्ताओं ने कहा, अबतक आंखों को बचाने वाली आंसुओं की अंदरुनी परत के बारे में जानकारी लेने के लिए जो तरीका इस्तेमाल किया जाता था उससे बाहरी परत को नुकसान पहुंचता था और पलक झपकने की वजह से सटीक जानकारी भी नहीं मिल पाती थी।

इजरायल स्थित एड्ओम एडवांस्ड ऑप्टिकल मेथड्ज लिमिटेड के प्रमुख शोधकर्ता योएल एरियेली ने कहा, कि इस तकनीक के तहत आंसू की आंतरिक परत की तस्वीर उतारने वाला हमारा उपकरण नैनोमीटर विभेदन के आधार पर कार्य करता है। अध्ययन में कहा गया कि नये उपकरण से सुरक्षित हेलोजन रोशनी आंखों में डाली जाती है और उससे बनने वाले प्रतिबिंब का विश्लेषण किया जाता है।

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शोधपत्र के मुताबिक यह उपकरण पूरी तरह से स्वचालित है और मात्र 40 सेकेंड में आंखों के ऊपर मौजूद आंसुओं की अंदरुनी परत में आए बदलाव का पता लगा लेता है जिससे डॉक्टर सटीक तरीके आकलन कर पाते हैं खासतौर पर आंतरिक उप परत का। शोधकर्ताओं ने कहा कि उप-परत सूखी आंख की बीमारी में अहम भूमिका निभाती है लेकिन अन्य तरीकों से इसका विश्लेषण मुश्किल होता है।

एरियेली ने बताया कि शोधदल ने उपकरण की क्षमता का उस समय मानव आंखों पर परीक्षण किया जब पलकें बिना किसी बाधा के झपक रही थीं। उन्होंने कहा, ‘यह उपकरण बेहतरीन तरीके से काम कर रहा है और इससे आंखों को भी कोई खतरा नहीं है क्योंकि यह आंसू की परत को नुकसान नहीं पहुंचाता और साधारण रोशनी का इस्तेमाल करता है।’

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