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शोरगुल डाल सकता है आपके दिमाग में बहुत अधिक असर, जानिए कैसे

व्यक्तियों में ध्वनि संवेदनशीलता श्रवण प्रणाली में आने वाली नए आवाजों पर कम प्रतिक्रिया देती है, खासकर तब जब नई आवाज बाकी से ज्यादा शोरगुल वाली हो।

India TV Lifestyle Desk
Published on: December 22, 2016 12:56 IST
noise pollution- India TV Hindi
noise pollution

हेल्थ डेस्क: हमारे आसपास का शोर हमारे लिए बहुत ही मायने रखता है। ये शोरगुल कभी-कभी अनचाहा बन जाता है। जिसके कारण आप चाहते हुए भी शांति से बैठ नहीं पाते है। आज का दौर ऐसा है कि चारों तरफ अधिक मात्रा में वाहन, फैक्ट्रियां आदि हो गई है। जिसके कारण किसी जगह पर शांति मिले। ये बहुत बड़ी बात है। एक शोध में ये बात सामने आई कि ज्यादा शोरगुल से आपके दिमाग में बहुत अधिक फर्क पड़ता है।

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ध्वनि के प्रति संवेदनशीलता से व्यक्तियों के दिमाग के कार्यो में परिवर्तन हो सकता है, क्योंकि यह ध्वनि प्रणाली से जुड़ा हुआ है। एक नए शोध में यह बात सामने आई है। फिनलैंड के हेलसिकी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि ध्वनि के प्रति संवेदनशीलता श्रवण उद्दीपन के इनकोडिंग में परिवर्तन से जुड़े हुए हैं। यह आवाजों में अंतर करने का काम करते हैं।

व्यक्तियों में ध्वनि संवेदनशीलता श्रवण प्रणाली में आने वाली नए आवाजों पर कम प्रतिक्रिया देती है, खासकर तब जब नई आवाज बाकी से ज्यादा शोरगुल वाली हो।

शोधकर्ताओं के निष्कर्ष बताते हैं कि यह संवेदनशील लोगों के लिए कई तरह के आवाजों के बदलाव को समझ पाना ज्यादा मुश्किल होता है। उनकी श्रवण प्रणाली ज्यादा शोर से खुद को बचाने की प्रतिक्रिया में कम हो जाती है।

हेलसिंकी विश्वविद्यालय की शोधछात्रा व प्रमुख लेखक मरीना क्लिउचको ने कहा, "शोध से ध्वनि संवेदनशीलता को सिर्फ नकारात्मक मनोभाव से ज्यादा समझने में मदद मिली है। इससे हमें पर्यावरण संवेदनशीलता के मनोविज्ञान की नई जानकारी मिली है।"

निष्कर्षो से पता चलता है कि वे लोग जो ज्यादा ध्वनि के प्रति संवेदनशील हैं उनमें अवांछित ध्वनियों से नकरात्मकताअनुभव करने की ज्यादा संभावना है। इसकी संवेदनशीलता का उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव देखा गया।

शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई कि उनके कार्य से ध्वनि के प्रति संवेदनशीलता को एक प्रमुख रूप में उजागर करने में मदद मिलेगी। इससे निवास और कार्यस्थल के वातावरण में ध्वनि नियंत्रण योजना को अपनाया जा सकेगा।

इस शोध का प्रकाशन पत्रिका 'साइंसटिफिट रिपोर्ट' में किया गया है।

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