हेल्थ डेस्क: भारत में हर साल 1 जुलाई को राष्ट्रीय डॉक्टर्स दिवस (National Doctor Day) मनाया जाता है। हम ये बात अच्छी तरह से जानते है कि एक डॉक्टर हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा है। जो कि अपनी जिम्मेदारियों से हमें फिट रखता है। इसी योगदान के कारण हर साल इस दिवस को मनाया जाता है। जानें इसकी थीम के साथ मनाने का कारण
डॉक्टर दिवस की थीम
इस बार की थीम की बात करें तो वह 'डॉक्टरों के प्रति हिंसा को लेकर जीरो सहनशीलता' रखी गई है। इसका कारण है पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों के साथ हिंसा की घटना के बाद से पूरे देशभर के डॉक्टरों में जबरदस्त आक्रोश देखा गया।
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डॉक्टर डे मनाने का कारण
देश के महान चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ.बिधानचंद्र रॉय को सम्मान देने के लिए यह मनाया जाता है। उनकी पैदाइश की सालगिरह और पुण्यतिथि दोनों इसी तारीख को पड़ती है। इस दिन पूरी चिकित्सा बिरादरी को श्रद्धांजलि पेश की जाती है और हमारे जीवन में डॉक्टरों के महत्व पर प्रकाश डाला जाता है।
कौन थे डॉ बिधानचंद्र रॉय?
आपको बता दें कि विधानचंद्र का जन्म 1 जुलाई 1882 को हुआ था। इतना ही नहीं इस दिन इसकी मृत्यु भी हुई थी। यानी 1 जुलाई 1962 में इनका निधन हो गया था।
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वह सिर्फ बड़े लोगों के डॉक्टर नहीं थे बल्कि बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाओं को आम जनता की पहुंच के भीतर लाने के लिए वह जीवनभर कोशिश करते रहे। कोलकाता के कई बड़े हॉस्पिटल डॉ. रॉय की पहल पर ही शुरू हुए। राजनीति में आने के बाद उन्होंने कई संस्थाओं, नगरों और विश्वविद्यालयों की स्थापना की थी। 1928 में इंडियन मेडिकल असोसिएशन (आईएमए) की स्थापना में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की स्थापना में भी उनका बड़ा योगदान था। बड़े-बड़े पदों पर बैठने के बाद भी हर दिन गरीब मरीजों का इलाज अक्सर मुफ्त में करते रहे। 1961 में मृत्यु से ठीक पहले उन्होंने अपना घर और संपत्ति जनता के नाम कर दी। उसी बरस 4 फरवरी, 1961 को उन्हें 'भारत रत्न' भी दिया गया था।
उन्होंने जिन पांच शहरों की स्थापना की, उनमें दुर्गापुर, कल्याणी, बिधाननगर और अशोकनगर प्रमुख हैं। कल्याणी से जुड़ी इतनी कहानियां हैं कि उन पर एक सुंदर फिल्म बनाई जा सकती है। कहा जाता है कि कल्याणी नगर डॉ. रॉय के प्रेम का प्रतीक है। जनता के बीच चर्चित कहानी कुछ इस तरह है: भारत लौटने के बाद डॉ. रॉय का शुरुआती वक्त कोशिशों और संघर्षों में बीता क्योंकि चिकित्सा उनके लिए सिर्फ पेशा नहीं बल्कि समाज के कल्याण और उत्थान का सबसे अहम माध्यम था।