Wednesday, November 20, 2024
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बच्चों को होने वाली जानलेवा बीमारी 'मस्कुलर डिस्ट्रॉफी' का इलाज संभव, 99.9 प्रतिशत लोगों की हो जाती है मौत

ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी (डीएमडी) का इलाज अब स्टेम सेल थेरपी से संभव है। ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी (डीएमडी) सबसे खतरनाक और जानलेवा बीमारी है। 

Reported by: IANS
Published on: October 22, 2019 16:25 IST
 muscular dystrophy treatment - India TV Hindi
 muscular dystrophy treatment 

ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी (डीएमडी) का इलाज अब स्टेम सेल थेरपी से संभव है। ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी (डीएमडी) सबसे खतरनाक और जानलेवा बीमारी है। अगर इस बीमारी का समय रहते इलाज न किया जाए तो मरीज काल के गाल में समा सकता है। स्टेम सेल सोसाइटी ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष डॉ. बी.एस. राजपूत ने बताया, "बच्चों में होने वाली बीमारियों में डीएमडी एक गंभीर बीमारी होती है। इससे मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं और समय पर उपचार न मिलने पर न केवल वे चलने में असमर्थ हो जाते हैं, बल्कि उनकी मौत भी हो जाती है। ऐसे बच्चों को स्टेम सेल थेरेपी के जरिए उनके क्षतिग्रस्त टिश्यू को फिर से सही किया जाता है।"

डॉ. राजपूत ने बाताया, "डीएमडी से पीड़ित एक व्यक्ति की स्टेम सेल के माध्यम से जान बचाई गई है। इस थेरेपी के माध्यम से बिहार के जमुई जिला निवासी आयुष को न केवल ठीक किया गया, बल्कि उसके जीविकोपार्जन के लायक भी बनाया गया है। आयुष इन दिनों लखनऊ में अपना इलाज करवा रहे हैं।"

उन्होंने बताया, "आयुष का जबसे स्टेम सेल थेरेपी द्वारा इलाज शुरू हुआ है, उसकी मांसपेशियों की ताकत घटने से रुक गई है और उसकी सांस भी नहीं फूलती। फिलहाल वह ज्यादातर कार्य कंप्यूटर पर करता है। यह भारत में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का पहला मरीज है जिसने इस मुकाम को हासिल किया है।"

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डॉ. राजपूत ने बताया, "यह रोगी लगभग पांच साल पहले उनके पास स्टेम सेल थेरेपी लेने आया था और तबसे यह हर वर्ष आकर स्टेम सेल थेरेपी का एक सेशन लेकर जाता है। आज यह युवक लगभग 26 वर्ष का हो गया है। जबकि इस रोग के 99.9 प्रतिशत रोगी 13 से 23 वर्ष के बीच हार्ट या फेफड़े फेल हो जाने के कारण असमय मृत्यु का शिकार हो जाते हैं।"

डॉक्टर ने बताया कि जॉइंट पेन में भी स्टेम थेरेपी का प्रयोग काफी कारगर है। स्टेम सेल से केवल तीन से चार सेशन में मरीज ठीक हो रहे हैं और इसका खर्चा भी सिर्फ एक से डेढ़ लाख रुपये तक ही है।

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भारत में इस बीमारी के रोगियों की संख्या लाखों में है। इस बीमारी का असर पूर्वी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़, जौनपुर और बलिया जैसे शहरों से लगे हुए बिहार के हिस्सों में यह रोग महामारी की तरफ फैला हुआ है।

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