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सावधान! मच्छर के काटने से डेंगू, चिकनगुनिया ही नहीं बल्कि फैलता है लिम्फेटिक फाइलेरिया, ऐसे करें खुद का बचाव

मच्छर डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया ही नहीं, लिम्फेटिक फाइलेरिया (हाथीपांव) भी फैलाता है। मच्छर के काटने पर मनुष्य के रक्त में पतले धागे जैसे कीटाणु तैरने लगते हैं और परजीवी की तरह वर्षो तक पलते रहते हैं। जानिए कैसे करें बचाव।

Reported by: IANS
Published on: June 19, 2018 10:04 IST
lymphatic filariasis- India TV Hindi
lymphatic filariasis

हेल्थ डेस्क: मच्छर डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया ही नहीं, लिम्फेटिक फाइलेरिया (हाथीपांव) भी फैलाता है। मच्छर के काटने पर मनुष्य के रक्त में पतले धागे जैसे कीटाणु तैरने लगते हैं और परजीवी की तरह वर्षो तक पलते रहते हैं। देश के 256 जिलों के 99 फीसदी गांवों में इसका उन्मूलन हो चुका है, लेकिन देश को फाइलेरिया मुक्त होने में अभी समय लगेगा। वर्ष 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में उस साल इस बीमारी के 87 लाख मामले दर्ज किए गए थे और 2.94 करोड़ लोग फाइलेरिया से होने वाली विकलांगता से पीड़ित थे।

मच्छर के लार से निकलकर मनुष्य के रक्त में परजीवी की तरह पलने वाले फाइलेरिया के वयस्क कीटाणु केवल मानव लिम्फ प्रणाली में रहते हैं और इसे नुकसान पहुंचाते रहते हैं। लिम्फ प्रणाली शरीर के तरल संतुलन को बनाए रखती है और संक्रमण का मुकाबला करती है।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा लिम्फेटिक फाइलेरिया (एलएफ) के उन्मूलन के लिए एक त्वरित योजना (एपीईएलएफ) शुरू की जा रही है। वर्ष 2020 के वैश्विक एलएफ उन्मूलन लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत को तेजी से काम करने की जरूरत है।

क्या है हाथीपांव

हार्ट केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, "फाइलेरिया, जिसे बोलचाल की भाषा में हाथीपांव भी कहा जाता है, अंगों, आमतौर पर पैर, घुटने से नीचे की भारी सूजन या हाइड्रोसेल (स्क्रोटम की सूजन) के कारण बदसूरती और विकलांगता का कारण बन सकता है। भारत में 99.4 प्रतिशत मामलों में वुकेरिए बैंक्रोफ्टी प्रजाति का कारण हैं।"

उन्होंने कहा, "यह कीड़े लगभग 50,000 माइक्रो फ्लेरी (सूक्ष्म लार्वा) उत्पन्न करते हैं, जो किसी व्यक्ति के रक्त प्रवाह में प्रवेश कर जाते हैं, और जब मच्छर संक्रमित व्यक्ति को काटता है तो उसमें प्रवेश कर जाते हैं। जिनके रक्त में माइक्रो फ्लेरी होते हैं वे ऊपर से स्वस्थ दिखायी दे सकते हैं, लेकिन वे संक्रामक हो सकते हैं। वयस्क कीड़े में विकसित लार्वा मनुष्यों में लगभग पांच से आठ साल और अधिक समय तक जीवित रह सकता है। हालांकि वर्षों तक इस कोई लक्षण दिखाई नहीं देता, लेकिन यह लिम्फैटिक प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकता है।"

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