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कैंसर के ट्रीटमेंट में जब दवा हो जाएं बेअसर, तो करें ये काम

एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें मरीज उस हालात में होता है जब जिंदगी और मौत के बीच फासले कम होते हैं। आम बोल चाल की भाषा में इसे लेट स्टेज कैंसर कहते हैं। जहां डाक्टरों के पास भी करने को बहुत कुछ नहीं बचा होता है। जानिए इसके बारें में...

Reported by: Kumar Kundan
Updated : July 11, 2018 11:18 IST
cancer
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हेल्थ डेस्क: आमतौर पर ये माना जाता है कि कैंसर एक खतरनाक और जानलेवा बिमारी है। सही वक्त पर अगर इसका इलाज नहीं किया गया तो ये जानलेवा भी हो सकती है। कई सारे ऐसे मरीजों में ऐसा देखा भी गया है। बड़ा सवाल ये है कि अगर कैंसर के उस स्टेज पर मरीज पहुंच जाए जहां से दवाओं का असर बेअसर होने लगे तो क्या करे।

जब जिंदगी और मौत के बीच फासले कम होते हैं

ये एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें मरीज उस हालात में होता है जब जिंदगी और मौत के बीच फासले कम होते हैं। आम बोल चाल की भाषा में इसे लेट स्टेज कैंसर कहते हैं। जहां डाक्टरों के पास भी करने को बहुत कुछ नहीं बचा होता है। ऐसे में डाक्टर मरीज कोपैलेटिव केयर यूनिट में ले जाते हैं। एक ऐसा युनिट जहां जबतक जियो खुलकर जियो कम के फार्मूले पर इलाज होता है

इंदौर के एक इंजीनियर को कैंसर का जब तक पता चलता तब तक देर हो चुकी थी। जिंदगी की डोर हाथों से रेत की तरह फिसलती जा रही थी। ऐसे में एम्स के कैंसर डिपार्टमेंट के पैलेटिव केयर युनिट में उन्होंने दाखिला लिया और परिणाम काफी बेहतर मिलने लगा। वो खुद को पहले से ज्यादा मजबूत महसूस करने लगे और सबसे बड़ी बात अपने परिवार को पैरों पर खड़ा होने के लिए सहायता करने लगे। आज उनकी पत्नी इस स्थिति में पहुंच गई हैं कि आने वाले दिनों में अगर कोई विपरीत हालात होते हैं तो घर की जिम्मेदारी उठा सका।

ये भी पढ़ें:

अगली स्लाइड में जानें क्या है पैलेटिव केयर यूनिट

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