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ज्यादा उम्र में हार्ट ट्रांसप्लांट संभव नहीं तो 'हार्टमैट-3' का कर सकते हैं इस्तेमाल

गंभीर हृदय रोगों के मरीज, जिन्हें हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन अधिक उम्र होने के कारण इस प्रक्रिया में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उनके लिए 'हार्टमैट-3' थेरेपी एक वरदान साबित हुआ है।

Edited by: India TV Lifestyle Desk
Published on: September 04, 2018 18:57 IST
heart problem- India TV Hindi
heart problem

हेल्थ डेस्क: गंभीर हृदय रोगों के मरीज, जिन्हें हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन अधिक उम्र होने के कारण इस प्रक्रिया में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उनके लिए 'हार्टमैट-3' थेरेपी एक वरदान साबित हुआ है। हार्टमैट-3 का प्रयोग दुनियाभर के 26 हजार से ज्यादा रोगियों पर किया गया, जिसमें से 14 हजार रोगी अपना जीवन सकुशल जी रहे हैं। मैक्स अस्पताल के हार्ट ट्रांसप्लांट और एलवीएडी प्रोग्राम विभाग के निदेशक डॉ. केवल किशन का कहना है, "जिन मरीजों का पल्मोनेरी प्रेशर बढ़ा होता है या जो रोगी लंबे समय तक ट्रांसप्लांट का इंतजार नहीं कर सकते, उनके लिए हार्टमैट-3 डेस्टिनेशन थेरेपी के लिए बेहतर है। इसके अलावा एलवीएडी 65 साल से ज्यादा उम्र के रोगियों के लिए उपयुक्त है, जिनके लिए हार्ट ट्रांसप्लांट की सलाह नहीं दी जाती। उनके लिए काफी फायदेमंद है।" 

एलवीएडी के ब्रांड में सबसे आम 'हार्टमैट' है, जिसे अमेरिका की कंपनी सेंट जूडस मेडिकल ने बनाया है और पिछले साल एबॉट हेल्थकेयर ने लिया है। हार्टमैट के वर्जन पिछले दो साल से उपलब्ध है। इसके अलावा 'हार्टमैट 2' को ज्यादातर ब्रिज के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है जो कि हार्ट ट्रांसप्लांट तक अस्थायी तौर पर लगाया जाता था और यह लंबे समय तक चलता था जिसे हृदयरोग विशेषज्ञ डीटी (डेस्टिनेशन थेरेपी) का नाम देते हैं।

रामप्रसाद गर्ग (63) को साल 2009 में गंभीर हार्ट अटैक आया था। इसके बाद से रामप्रसाद का दिल दिन प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा था। कुछ महीनों बाद रामप्रसाद को खाना पचाने में भी दिक्कत होने लगी। बेड पर लेटने से उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगती थी। रामप्रसाद को 4 मई, 2016 को 'हार्टमैट 3' प्रत्यारोपित किया गया और एक महीने बाद डॉक्टरों ने निर्णय लिया कि यह उनके लिए बेहतर इलाज है।(सर्वाइकल कैंसर से हर 7 मिनट में हो रही है 1 भारतीय महिला की मौंत, जानिए क्यों ट्विटर पर बना बहस का मुद्दा)

उस समय रामप्रसाद भारत के पहले और एशिया के दूसरे एलवीएडी इम्प्लांट कराने वाले व्यक्ति बने। उन्हें कुछ समय तक अस्पताल में रखकर रिहेबिटेशन किया गया, जहां मेडिकल टीम ने सुनिश्चित किया कि वह आराम से चल सके और कुछ कदम चढ़ सके। तीन हफ्ते बाद रामप्रसाद को अस्पताल से छुट्टी मिली तो उनकी पूरी जिंदगी ही जैसे बदल गई थी। आज वह बहुत ही सामान्य जिंदगी बिता रहे हैं।(नियमित वैक्सिंग करना हो सकता है आपकी बदसूरती का कारण, भूलकर भी वैक्स कराते समय न करें ये गलतियां)

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