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हर वक्त रहती है थकान-सांस की तकलीफ तो हो सकती है हर्ट की प्रॉब्लम

संस्थान में अक्सर लोग सांस लेने में तकलीफ, थकान, उल्टी, टखनों में सूजन की शिकायतों नजरंदाज कर देते हैं, मगर ये दिल की बीमारी के भी लक्षण हो सकते हैं। यह कहना है हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर संदीप सेठ का।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: June 01, 2018 17:42 IST
heart problem- India TV Hindi
Image Source : PTI heart problem

नई दिल्ली: संस्थान में अक्सर लोग सांस लेने में तकलीफ, थकान, उल्टी, टखनों में सूजन की शिकायतों नजरंदाज कर देते हैं, मगर ये दिल की बीमारी के भी लक्षण हो सकते हैं। यह कहना है हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर संदीप सेठ का। डॉक्टर संदीप सेठ देश के नामी अस्पताल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के हृदयरोग विभाग के प्रोफेसर और हृदय-प्रत्यारोपण विंग के प्रमुख हैं और एम्स में अब तक हो चुके 64 मरीजों में प्रत्यारोपण सर्जरी दल में शामिल रहे हैं। सेठ का कहना है कि हृदय रोग के बढ़ते खतरों से बचाव के लिए जागरूकता जरूरी है। 

दिल के मरीज और उनके इलाज के मसले पर आईएएनएस से बातचीत में डॉ. सेठ ने कहा कि दिल की बीमारी कोई लाइलाज बीमारी नहीं है। देश में आज हर तरह के दिल के मरीजों का इलाज संभव है मगर एहतियात सबसे ज्यादा जरूरी है। ऐहतियात नहीं बरतने और वक्त पर ईलाज नहीं होने पर दिल की बीमारी से पीड़ित मरीजों को बचाना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने बताया कि एक अध्ययन के मुताबिक भारत में दिल की बीमारी की पहचान होने के एक साल के भीतर करीब 23 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है।

डॉ. सेठ ने कहा, "दिल की बीमारी के खतरों को कम करने के लिए मरीजों को मधुमेह, उच्च रक्तचाप, सांस व फेफड़े संबंधी अन्य तकलीफों को नियंत्रण में रखना जरूरी होता है।" 

उन्होंने कहा, "सांस लेने में तकलीफ, थकान, उल्टी, टखनों में सूजन की शिकायतों को लोग अक्सर नजरंदाज कर देते हैं, लेकिन ये दिल की बीमारी के भी लक्षण हो सकते हैं। इसलिए दिल संबंधी बीमारी की जांच करवानी चाहिए।" उन्होंने बताया कि एम्स में डॉ. वेणुगोपाल के नेतृत्व में 1994 में पहले प्रत्यारोपण करने वाली टीम में भी वह शामिल थे और अब तक संस्थान में 64 मरीजों में हृदय-प्रत्यारोपण हो चुका है। 

डॉ. सेठ ने बताया कि एम्स में इस साल फेफड़े का प्रत्यारोपण भी शुरू हो जाएगा। इसके लिए फेफड़ा रोग विभाग की तैयारी तकरीबन पूरी हो चुकी है और साल के अंत तक मरीज में फेफड़े का प्रत्यारोपण किया जाएगा।

उन्होंने बताया कि फेफड़ा व हृदय के प्रत्यारोपण के लिए डोनर मिलना चुनौतीपूर्ण कार्य है। क्योंकि ऐसे अंग दुर्घटना के शिकार हुए लोगों के ब्रेन डेड होने पर ही उनके अंग दान किए जाते हैं। लिहाजा, उनके परिजनों द्वारा तत्काल अंगदान के लिए फैसला लेना काफी महत्वपूर्ण होता है। 

डॉक्टर सेठ ने बताया कि हृदय प्रत्यारोपण में करीब 10 लाख रुपये खर्च होते हैं, जिसे सर्जरी पर 1.5 लाख से दो लाख रुपये खर्च होते हैं। उससे पहले जांच में 20,000-30,000 रुपये खर्च होते हैं। सर्जरी के बाद दो साल तक दवाई व मरीज की देखभाल, पोषण पर खर्च है। उन्होंने बताया कि गरीबों के इलाज के लिए सरकार पैसे देती है। डॉ. सेठ ने कहा, "अब तक हृदय प्रत्यारोपण के लिए जिन मरीजोंे के लिए खर्च का इस्टीमेट बनाकर हमने भेजा है सबको सरकार की तरफ से इलाज का खर्च मिला है।"

डॉ. सेठ ने बताया हृदय प्रत्यारोपण की तुलना में फेफड़े के प्रत्यारोपण पर तकरीबन तीन गुना ज्यादा खर्च होता है।

आमतौर पर दिल की बीमारी 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में देखी जाती है लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है बच्चों को दिल की बीमारी नहीं होती है। कई बच्चों को जन्म से भी दिल की बीमारी होती है। 

दिल्ली के डाबरी इलाके के सूर्यप्रकाश का डॉ. सेठ ने 11 साल की उम्र में ही हृदय-प्रत्यारोपण किया था। सूर्य प्रकाश के माता-पिता ने बताया कि उन्हें अपने बेटे को लेकर सालभर कई अस्पतालों के चक्कर काटने पड़े। मगर कहीं इलाज नहीं हो पाया अंत में जब उसे एम्स रेफर किया गया तब डॉ. सेठ ने उन्हें तसल्ली दिलाई और आज सूर्य प्रकाश सामान्य बच्चों की तरह अपनी पढ़ाई कर रहा है। 

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