द लांसेट पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार बदलते जलवायु परिदृश्य में तापमान बढ़ने के कारण भारत में पैदा होने वाले बच्चों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण, लू और कुपोषण का खराब असर पड़ेगा और वे शारीरिक और मानसिक रुप से कमजोर होंगे।
रिपोर्ट की सह-लेखिका पूर्णिमा प्रभाकरन ने कहा कि भारत अपनी विशाल आबादी, स्वास्थ्यसेवा में असमानताओं, गरीबी और कुपोषण के उच्च दर के कारण जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य प्रभावों से प्रभावित होने वाले देशों में शामिल है।
नई दिल्ली स्थित 'पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया' की प्रोफेसर प्रभाकरन ने बताया कि रिपोर्ट में सभी आयु वर्ग के लोगों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का विश्लेषण किया गया है। लेकिन बच्चों पर ध्यान केंद्रीत किया जा रहा है क्योंकि यह मुद्दा तात्कालिक और अतिगंभीर है।
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उन्होंने कहा कि भारत में बाल मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण डायरिया संक्रमण है जो धीरे धीरे कई क्षेत्रों में फैल जाएगा। हजारों लोगों के लिए जानलेवा साबित हुई वर्ष 2015 की घातक लू जल्द ही हमारे लिए रोज की बात हो जाएगी।
प्रभाकरन ने बताया कि बच्चे बदलते जलवायु से होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। उनका शरीर और प्रतिरक्षा प्रणाली अभी भी एक विकासशील चरण में है, जिससे उन्हें बीमारी, प्रदूषण और पर्यावरण प्रदूषक से अधिक प्रभावित होने की संभावना है।
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'लांसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ ऐंड क्लाइमेट चेंज' स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन संबंधी 41 प्रमुख संकेतकों पर वार्षिक विश्लेषण है। यह वार्षिक परियोजना विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक सहित 35 संस्थानों के 120 विशेषज्ञों के सहयोग से चलायी जा रही है।