हालांकि, शोधकर्ताओं का कहना है कि उनके शोध से महज एक रुझान का अंदाजा मिलता है और इसे सबूत नहीं माना जाना चाहिए। कई डॉक्टर यह भी कहते हैं कि दूध में कई प्रकार के हार्मोन मिले होते हैं, जो अब खतरनाक साबित हो रहे हैं। कई बार लोग गाय और भैंस को जल्दी बड़ा करने के लिए हार्मोन के इंजेक्शन लगाते हैं। जब कोई उनका दूध पीता है, तो शरीर का हार्मोनल संतुलन बिगड़ जाता है। इसलिए इस प्रकार के डेयरी उत्पादों का सेवन करने से बचना चाहिए और सही दूध का सेवन करना चाहिए। लेकिन कैसे? महानगरीय और शहरी जिंदगी में क्या यह संभव है कि जो दूध हम पी रहे हैं, उसकी गुणवत्ता को हम पहले परखें। पता लगाएं। अगर ऐसा हो पाए तो इससे बेहतर कुछ नहीं।
कॉलेज ऑफ वेटरनरी साइंस एंड एनिमल हसबेंडरी, पंतनगर (उत्तराखंड) के डीन डॉ जी. के. सिंह कहते हैं दूध को ‘पार्ट ऑफ बैलेंस फूड’ कहा जाता है। इसे फर्स्ट फूड के रूप में ग्लोबल फूड की संज्ञा भी दी जाती है। जहां तक दूध से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों की बात है, तो इसका कारण आजकल भारी मात्रा में हो रहे दूध उत्पादन में मिलावट है। आज हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या दूध को स्वच्छ रखने और सही जगह रखने की है। एक सवाल यह भी है कि हमें जितनी मात्रा में दूध की जरूरत है, वह उतनी मात्रा में है नहीं। इसके बावजूद भी दूध की आपूर्ति हो रही है, तो कहां से हो रही है। इसलिए यह पता कर पाना मुश्किल है कि मौजूद दूध में कितना मिलावटी दूध है।
पहले जब दूध को अमृत माना जाता था, तो उस दौर में यह भी ध्यान रखा जाता था कि पशुओं को कहां रखा गया है। उनका चारा और पानी साफ है कि नहीं। दूध निकालने वाला साफ-सफाई का ध्यान रख रहा है कि नहीं और जो दूध का एक जगह से दूसरे जगह आदान प्रदान कर रहा है, उस दौरान स्वच्छता का कितना ध्यान रखा जाता है। जहां तक पचाने की बात है, तो लैक्टोज के अलावा दूध में प्रोटीन अच्छी मात्रा में पाई जाती है, जिसके कारण कुछ लोग इसे पचा नहीं पाते हैं। अक्सर हम जरूरत से ज्यादा मात्रा में भी दूध का सेवन कर लेते हैं, जिसके कारण नुकसान होता है।