नई दिल्ली: मौजूदा समय में कई युवाओं के लिए ऊंची आवाज में संगीत सुनने के लिए लगातार हेडफोन और इयरफोन का इस्तेमाल करना एक सनक एवं फैशन बन गया है। लेकिन, यह आदत उनकी सेहत के लिए बेहद गंभीर खतरे की वजह बन रही है। यह उनके कान के पर्दे को क्षतिग्रस्त कर सकती है, यह शोर उन्हें ऐसे बहरेपन का शिकार बना सकता है, जिसका उपचार संभव नहीं है।
ये भी पढ़े
- योग करने से दिल फिट होने के साथ-साथ मिलेगे ये बेहतरीन लाभ
- इन टेस्टी तरीके से करें आयरन, कैल्शियम आहार का सेवन
- मोटापा हो सकता है आपकी किडनी के लिए खतरनाक, जानिए कैसे
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने शोर से होने वाली बहरेपन की समस्या के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए 'सेफ साउंड इनिशिएटिव' की शुरुआत की है। आईएमए का कहना है कि कई युवा टिन्निटस (कानों में गुनगुनाहट की समस्या) की शिकायत लेकर अस्पताल आ रहे हैं।
यह समस्या इयरफोन, हेडफोन और मोबाइल फोन जैसे गैजेट के लंबे समय तक उपयोग के कारण पैदा होती है। इनके लगातार इस्तेमाल के कारण 'थर्मल एंड हाई फ्रीक्वेंसी हीयरिंग लॉस' का खतरा पैदा होता है।
अध्ययनों के अनुसार, जिस नाइट क्लब में 110 डेसीबल का संगीत बज रहा होता है, वहां एक मिनट के लिए रहना, 15 मिनट से अधिक समय के लिए 95 डेसीबल पर एमपी 3 प्लेयर सुनना और एक घंटे तक 90 डेसीबल का संगीत सुनते हुए मेट्रो में सफर करना, ये सभी एंप्लीफाइड म्युजिक एक्सपोजर के उदाहरण हैं और इन सभी गतिविधियों में से किसी भी गतिविधि में एक दिन के लिए शामिल होने का मतलब अधिक शोर के संपर्क में आना है।
इस विषय पर रविवार (12 मार्च) को नई दिल्ली के ली मेरिडियन होटल में आईएमए द्वारा आयोजित 'सेफ साउंड इनिशिएटिव' पर आयोजित दूसरी नेशनल कॉन्फ्रेंस में विचार विमर्श किया जाएगा। सम्मेलन के एजेंडे में स्वास्थ्य, कानूनी और संगठनात्मक मुद्दों के साथ-साथ शोर की समस्या के वित्तीय पहलू भी शामिल हैं।
पद्मश्री से सम्मानित आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल इस सम्मेलन की अध्यक्षता करेंगे तथा सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनिल आर. दवे मुख्य अतिथि होंगे।
अगली स्लाइड में पढ़े और