डॉ. कालरा ने कहा कि हाइपोग्लिसीमिया जिसका मलतब होता है खून में शूगर का अचानक बढ़ जाना। इससे कमजोरी, प्यास, सिरदर्द और नजर में धुंधलापन आ सकता है। टाइप 1 डायबिटीज के मरीजों को हाइपोग्लीसीमिया का खतरा ज्यादा होता है। उपवास के बाद कुछ लोग काफी मात्रा में खाना खा लेते हैं। मगर डायबिटीज के मरीजों को अपने खानपान का रमजान में खास ध्यान रखना चाहिए।
डॉ. कालरा ने कहा कि रोजे के शुरुआती दिन ज्यादा चुनौतीपूर्ण होते हैं, लेकिन इन्सुलिन की उचित मॉनिटरिंग करके स्थिति को संभाला जा सकता है।
उन्होंने कहा कि डायबिटीज के मरीजों को पूरा दिन भूखे रहने के बाद रोजा खोलते वक्त खुद पर थोड़ा नियंत्रण रखना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखें की शरीर में पानी की उचित मात्रा बनी रहे और मीठे कोल्ड ड्रिंक और कैफीन युक्त पेय से बचें। जूस की तुलना में फल को तरजीह दें, क्योंकि यह प्राकृति मीठे से भरपूर होते हैं।
डॉ. कालरा ने कहा कि सहरी के वक्त छोटे-छोटे हिस्सों में खाना खाना चाहिए और इसमें ज्यादा प्रोटीन और कम कार्बोहाइड्रेट्स होने चाहिए, जिसमें काफी सारे फल, साबुत अनाज, लेनटिल्स, कम शूगर वाले सीरिल और बीन्स शामिल हों।
उन्होंने कहा कि मिठाइयां, तली हुए चीजें और ज्यादा मीठे और नमक वाले पकवानों से बचें। सहरी में अंडे और दाल जैसी प्रोटीन से भरपूर चीजें लें, ये आपको पूरे दिन के लिए ऊर्जा देंगी।
डॉ. कालरा ने कहा कि डायबिटीज के मरीज को रोजे में छूट की धार्मिक रिवायत को ध्यान में रखना चाहिए और डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए, ताकि वे सुरक्षित और सेहतमंद रमजान मना सकें।
उन्होंने कहा कि रोजा रखना धार्मिक अकीदे के लिए जरूरी है, लेकिन हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह पूरी तरह से समझदारी और सेहत के हिसाब से रखा जाए। डॉक्टरों को चाहिए कि वह हाई रिस्क वाले मरीजों को खतरों के बारे में जानकारी दें और उन्हें रोजा न रखने के लिए प्रोत्साहित करें।
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