हेल्थ डेस्क: डेंगू जानलेवा बीमारी है और इससे बचाव ही उपाय है। ऐसे में जरूरत है इसके बारे में सही जानकारी हो, तो जानिए इसका लारवा कैसे पनपता है, यह कैसे फैलता है।
अंडे बनने में दो से तीन दिन का वक्त लगता है। चार से सात दिन के भीतर अंडे से लारवा बनते हैं। फिर लारवा से एक से तीन दिन में प्यूपा और फिर एडल्ट मच्छर। छह से सात दिन के भीतर अंडे से वयस्क मच्छर बनते हैं। मादा मच्छर ज्यादातर दिन में ही लोगों को काटता है। सूरज उगने के दो घंटे बाद और सूरज डूबने के दो घंटे पहले सबसे अक्रामक होता है। आफिसों में यह फाइलों के बीच, मेज के नीचे छिपकर रहता है।
अमूमन रात के वक्त यह मच्छर निस्क्रिय माना जाता है। डेंगू का वायरस जब इंसान के अंदर जाता है तो मरीज को बुखार की फीलिंग आने लगती है। वायरस करीब दो से सात दिन तक रहता है, जबकि बुखार तीन से 14 दिन तक रहता है। डेंगू के लक्षण बुखार खत्म होने के दौरान देखने को मिलते हैं। पीजीआई स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के एचओडी ने बताया कि आज से पांच साल पहले थाइलैंड में डेंगू के लिए वैक्सीन तैयार हुई थी, लेकिन चार अलग-अलग वायरस होने के कारण वह सभी पर कारगर साबित नहीं हुई।
डेंगू का वायरस चार तरह का होता है। डेन-1, डेन-2, डेन-3, डेन-4। इंटरनेशनल जरनल लान्सेंट में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक, डेंगू डेन-2 पर ज्यादा प्रभावी साबित नहीं हुआ, इसलिए वैक्सीन का काम सफल नहीं हो पाया, लेकिन थाईलैंड के वैज्ञानिक फिर से इस पर जुट गए हैं। उम्मीद है कि जल्द ही यह काम पूरा हो जाए। जब भी डेंगू या किसी दूसरी बीमारी का आउटब्रेक होता है तो उस दौरान लोगों की इम्युनिटी उसके मुकाबले मजबूत बन जाती है। उसके बाद नए लोग आते हैं, जिनकी इम्युनिटी कमजोर होती है, इसलिए बीमारी का रेशियो बढ़ जाता है।(पत्ता-गोभी हो या फिर कच्चा खाना हो सकता जानलेवा, हो सकती है ये खतरनाक बीमारी)
सेक्टर 16 जीएमएसएच के मेडिसिन के डॉक्टर ने बताया कि इस बीमारी का फिलहाल कोई इलाज नहीं है। लेकिन बचाव किया जा सकता है। जैसे डेंगू होने पर पानी की कमी न होने दें। मच्छरों को पैदा न होने दें। डेंगू के सभी पेशेंट को प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं होती। यदि प्लेटलेट्स 10 हजार से कम हो जाए या फिर नाक, मसूढ़ों, पेशाब और मलत्याग के समय रक्तस्राव होने लगे तो प्लेटलेट्स चढ़ान की जरूरत पड़ती है। रक्त की कमी से कई अंग काम करना बंद कर देते हैं।(डिमेंशिया के इलाज में मददगार है कम तीव्रता की अल्ट्रासाउंड तरंगें, जानिए कैसे)
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