हेल्थ डेस्क: राष्ट्रीय राजधानी के चिकित्सकों के यहां सांस की बीमारी और ऐसे लक्षणों वाले मरीजों की संख्या बढ़ने की सूचना है। पिछले पांच दिनों में यह संख्या लगभग दोगुनी हो गई है। इसके लिए शहर में धूल प्रदूषण को जिम्मेदार बताया गया है। धूल और धुंध की एक मोटी परत पिछले हफ्ते से दिल्ली के आसमान पर छाया हुआ है।
स्वस्थ लोगों को भी सांस लेने में परेशानी होने लगी है। पीएम 10 स्तर, जो 10 मिमी से भी कम व्यास वाले कणों की उपस्थिति से होता है, गुरुवार को दिल्ली-एनसीआर में 796 तक जा पहुंचा, जबकि दिल्ली में इसका स्तर 830 पर था। पीएम 2.5 का लेवल, माइक्रोस्कोपिक कण जो फेफड़ों में गहरे तक समा जाते हैं और सबसे ज्यादा नुकसान करते हैं, 320 पर दर्ज किया गया, जो कि एक बेहद अस्वास्थ्यकर स्थिति है।
हार्ट केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा, "दिल्ली में प्रदूषण का मौजूदा स्तर कोख में पल रहे एक अजन्मे शिशु तक को प्रभावित कर सकता है। एक सामान्य वयस्क आराम की स्थिति में प्रति मिनट छह लीटर हवा अंदर खींचता है, जो शारीरिक गतिविधि के दौरान लगभग 20 लीटर तक बढ़ जाता है। वर्तमान में प्रदूषण के खतरनाक स्तरों को देखते हुए, यह फेफड़ों में केवल विषाक्त पदार्थो की मात्रा में ही वृद्धि करेगा।"
डॉ. अग्रवाल ने बताया, "वर्तमान स्थिति को देखते हुए सबसे अच्छी सलाह यह है कि जितना संभव हो सके घर में रहना चाहिए और धूल से दूर रहना चाहिए। घर के अंदर एयर प्योरीफायर का प्रयोग करें। जो लोग काम के सिलसिले में बाहर निकलने से नहीं बच सकते हैं, उन्हें अनिवार्य रूप से मॉस्क का उपयोग करना चाहिए।"
एचसीएफआई के कुछ सुझाव :-
धूल भरी हवा में बाहर टहलने, जॉगिंग करने या व्यायाम करने से बचें।
वातानुकूलित कमरों में घर के अंदर रहें। अगर उपलब्ध हो तो एयर प्योरीफायर का उपयोग करें।
पहले से ही सांस की समस्या वाले लोग बाहर निकलते समय एन 59 मॉस्क का उपयोग करें।
कार में चलते समय, खिड़कियों के शीशे बंद रखें।
ऐसे स्थानों पर जाने से बचें, जहां अधिक वाहन आते-जाते हैं।
अस्थमा या सीओपीडी वाले मरीजों को गर्मी में भी अपनी दवाएं नियमित रूप से लेनी चाहिए।