हेल्थ डेस्क: आज की भागदौड़ भरी लाइफ और खराब लाइफस्टाइल के कारण मोटापा एक आम समस्या हो गई है। इस समस्या से हर दूसरा व्यक्ति परेशान है। चाहे वह अपने खानपान के कारण हो या फिर अन्य किसी कारण। अधिक मोटापा के कारण आपके शरीर में कई और परेशानियां पनपरने लगती है। जो कि आपके लिए हानिकारक साबित हो सकती है। इसी किडनी में समस्या होना मोटापा का ही एक कारण हो सकता है।
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किडनी संबंधी गंभीर बीमारियों के लिए डॉक्टर मोटापे की समस्या को जोखिम भरा बताते हैं और देश में किडनी प्रतिरोपण की बढ़ती जरूरत को देखते हुए कैडेवर अंग दान की दिशा में जागरकता लाने की वकालत करते हैं।
नौ मार्च को विश्व किडनी दिवस के मौके पर विशेषज्ञों का कहना है कि मोटापा और क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) का मेल एक घातक स्थिति हो सकती है।
फोर्टिस फ्लाइट लेफ्टिनेंट राजन ढल अस्पताल के इंस्टीट्यूट ऑफ रेनल साइंसेस एंड ट्रांसप्लांट के निदेशक डॉ संजीव गुलाटी के अनुसार फोकल सेगमेंटल ग्लूमेरलोक्लेरोसिस (एफएसजीएस) एक खतरनाक स्थिति है जिससे गुर्दा खराब होने का डर होता है और इसमें उपचार का विकल्प केवल डायलासिस या किडनी प्रतिरोपण रह जाता है। गौरतलब है कि मोटापा एफएसजीएस का एक प्रमुख कारण है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2025 तक मोटापा दुनियाभर में 18 प्रतिशत पुरषों और 21 प्रतिशत महिलाओं को प्रभावित करेगा। इस तरह के संकेत भी हैं कि मोटापा क्रोनिक किडनी डिसीज (सीकेडी) के लिए हमेशा जोखिम भरा होता है और अंतिम स्तर की किडनी की बीमारियां (ईएसआरडी) भी इससे हो सकती हैं।
मोटापे से सीकेडी की आशंका दो तरह से हो सकती है। टाइप 2 डायबिटीज बढ़ने, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग बढ़ने से परोक्ष रूप से यह बीमारी बढ़ सकती है और किडनी तथा शरीर के अन्य तंत्रों पर कामकाज का बोझ बढ़ने से किडनी को सीधा नुकसान हो सकता है।
डॉ गुलाटी के अनुसार मोटापा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सीकेडी का कारण है। पिछले पांच साल में बच्चों में भी मोटापे के मामले देखने को मिले हैं। वयस्कों की तरह बच्चों को भी सीकेडी का जोखिम हो सकता है।
उन्होंने इससे बचने के उपायों में रक्त शर्करा स्तर को संतुलित रखना, नियमित व्यायाम करना, स्वास्थ्यवद्र्धक भोजन करना और वजन नियंत्रित रखना, अधिक तरल पदार्थ लेना और खूब पेयजल पीना, धूम्रपान नहीं करना और प्राणायाम, योग तथा ध्यान करना बताया।
किडनी के रोगों से जुड़ा एक पहलू प्रतिरोपण का भी है। इस संबंध में कैडेवर अंग प्रतिरोपण एक बड़ा विकल्प है जो अभी भारत में दुर्लभ है। इस मामले में मृतक के परिजनों को तय करना होता है कि अंगदान करना हैं या नहीं। देश में अंगदान के प्रति जागरकता के लिए सरकार और चिकित्सा क्षेत्र के लोग प्रयासरत हैं लेकिन स्थिति अभी बहुत ज्यादा नहीं सुधरी है। लोग अपने प्रियजनों की मृत्यु के बाद उनके अंगदान को सहजता से स्वीकार नहीं करते। पश्चिमी देशों में अंगदान के प्रति जागरकता अधिक है।
भारत दुनिया की डायबिटीज राजधानी कहा जाता है। साल 2000 में यहां मधुमेह के मामले 3.2 करोड़ थे जो 2013 में बढ़कर 6.3 करोड़ हो गये। डब्ल्यूएचओ का ताजा आकलन कहता है कि अगले 15 साल में यह संख्या बढ़कर 10 करोड़ से ज्यादा पहुंच सकती है।
जानेमाने नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ गुलाटी कहते हैं कि कैडेवर अंगदान को प्रोत्साहित करने के लिए जन जागरकता जरूरी है। वह स्पेन के अंगदान केे तरीके का हवाला देते हैं और भारत के लिए भी इस पर विचार करने की जरूरत बताते हैं जहां सभी पार्थिव शरीरों से अंग दान किये जाते हैं। फ्रांस ने भी यही तरीका अपनाया है।
एम्स के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ संजय अग्रवाल के अनुसार भारत को निश्चित तौर पर कैडेवर अंगदान की जरूरत है लेकिन इस व्यवस्था को सफल बनाने के लिए कई चीजें करनी होंगी और फिलहाल हम उनसे काफी दूर है। उनका मानना है कि मौजूदा सामाजिक ढांचे में भारत में स्पेन जैसा मॉडल लागू करना संभव नहीं लगता। हमें समाज की सोच बदलने की दिशा में काम करना होगा।