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सावधान! मोबाइल डाटा के कारण गुम होता जा रहा है बचपन, हो रही है खतरनाक बीमारी

बच्चे और युवा तो सूचना तकनीक के प्रभाव से इस कदर प्रभावित हैं कि एक पल भी वे स्मार्टफोन से खुद को अलग रखना गंवारा नहीं समझते। एक तरह से कहें, तो इनमें हर समय एक तरह का नशा सा सवार रहता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे 'इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर' कहा गया है

Reported by: IANS
Updated : August 01, 2017 14:21 IST
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हेल्थ डेस्क:  हर चीज के अच्छे और बुरे पहलू होते हैं। अगर अच्छे पहलू को आप फॉलो करते हैं, तो आपको उसका सही फायदा मिलता है और अगर बुरे पहलू को फॉलो करते हैं, तो नुकसान और भटकाव के अलावा आपको कुछ नहीं मिलता। यही हाल आजकल के इंटरनेट लविंग बच्चों का है, जिनका बचपन रचनात्मक कार्यो की जगह डेटा के जंगल में गुम हो रहा है। (Monsoon Tips: इस मौसम में खानपान में बरते सावधानी, हो सकती है ये बीमारी)

पिछले कई सालों में सूचना तकनीक ने जिस तरह से तरक्की की है, इसने मानव जीवन पर बेहद गहरा प्रभाव डाला है। न सिर्फ प्रभाव डाला है, बल्कि एक तरह से इसने जीवनशैली को ही बदल डाला है। शायद ही ऐसा कोई होगा, जो इस बदलाव से अछूता होगा। (सावधान! बढ़ रहे है कम उम्र में हार्ट अटैक आने के मामले, ये है मुख्य कारण)

बच्चे और युवा तो सूचना तकनीक के प्रभाव से इस कदर प्रभावित हैं कि एक पल भी वे स्मार्टफोन से खुद को अलग रखना गंवारा नहीं समझते। एक तरह से कहें, तो इनमें हर समय एक तरह का नशा सा सवार रहता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे 'इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर' कहा गया है।

हाल के दिनों में जिस रिलायंस जियो ने मोबाइल डेटा के क्षेत्र में जिस तरह की जंग छेड़ी है, उसने इस समस्या को और विकराल कर दिया है। लगभग सभी कंपनियां बेहद कम पैसों में असीमित डेटा ऑफर कर रही हैं, जिसका खासकर बच्चे व युवा खुलकर लुत्फ उठा रहे हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि इसका इस्तेमाल वे अपने लिए रचनात्मक कार्यो में न के बराबर कर रहे हैं। सारा दिन फेसबुक, ट्विटर, स्काइप और सबसे गंभीर मुद्दा पॉर्नोग्राफिक साइटों को ब्राउज करने में लगे रहते हैं।

डेटा का करते है ऐसे इस्तेमाल

दक्षिणी दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में मेंटल हेल्थ व विहेवियरल साइंस विभाग के प्रमुख डॉ. समीर मल्होत्रा ने कहा, "समस्या तो पहले से ही थी, लेकिन हाल के दिनों में हालत और बदतर हुई है। कच्ची उम्र के बच्चे जो सही और गलत में फर्क नहीं कर पाते वे पॉर्नोग्राफी के कुचक्र में आसानी से फंस जाते हैं। पढ़ने-लिखने व अन्य रचनात्मक कार्यो में अपना समय देने के बदले वे अश्लीलता के दलदल में फंस रहे हैं और अपना कीमती वक्त मोबाइल पर खर्च कर रहे हैं। ऐसे बच्चों की तादाद तेजी से बढ़ रही है, जिनकी सबसे बड़ी जरूरत सिर्फ और सिर्फ मोबाइल डेटा है।"

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