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बच्चों में तेजी से बढ़ रही है ADHD बीमारी, जानिए कारण और ऐसे करें उनका बचाव

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मुताबिक, एडीएचडी की समस्या ज्यादातर प्री-स्कूल या केजी कक्षाओं के बच्चों को हो रहा है। जानिए पेरेट्स कैसे अपने बच्चों को इस बीमारी से बचाने में मदद कर सकते है।

Edited by: India TV Lifestyle Desk
Updated : September 11, 2017 10:21 IST
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हेल्थ डेस्क: आज के समय में हर बच्चें पर पढ़ाई का अधिक प्रेशर होता है। उतना ही जरुरी होता है कि उनके ऊपर अच्छे मार्क्स लाने का प्रेशर होता है। जिसके कारण बच्चा तनाव में बचा जाता है।

आज के समय की बात करें तो हर दूसरा बच्चा पढ़ाई के प्रेशर के नीचे दब गया है, लेकिन आप ये बात नहीं जानते होगे कि आपके बच्चा का डिप्रेशन लेना एक भयानक बीमारी को न्यौता दे रहा है। एक अध्य्यन में ये बात सामने आई है।

अध्ययनों के अनुसार, भारत में लगभग 1.6 प्रतिशत से 12.2 प्रतिशत तक बच्चों में एडीएचडी की समस्या पाई जाती है। अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिस्ऑर्डर अथवा ध्यान की कमी और अत्यधिक सक्रियता की बीमारी को एडीएचडी कहा जाता है। एडीएचडी की समस्या ऐसे परिवारों में अधिक बिगड़ सकती है जहां घर में तनाव का वातावरण रहता है और जहां पढ़ाई पर अधिक जोर देने की प्रवृत्ति रहती है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मुताबिक, एडीएचडी की समस्या ज्यादातर प्री-स्कूल या केजी कक्षाओं के बच्चों में होती है। कुछ बच्चों में, किशोरावस्था की शुरुआत में स्थिति खराब हो सकती है। यह वयस्कों में भी हो सकता है।

आईएमए के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, "एडीएचडी वाले बच्चे बेहद सक्रिय और कुछ अन्य व्यवहारगत समस्याएं प्रदर्शित कर सकते हैं। उनकी देखभाल करना और उन्हें कुछ सिखाना मुश्किल हो जाता है। वे स्कूल में भी जल्दी फिट नहीं हो पाते हैं और कोई न कोई शरारत करते रहते हैं। यदि इस कंडीशन को शुरू में ही काबू न किया जाए तो यह जीवन में बाद में समस्याएं पैदा कर सकती हैं।"

उन्होंने कहा, "यद्यपि, एडीएचडी का कोई इलाज नहीं है, परंतु उपचार के लक्षणों को कम करने और ऐसे बच्चों की कार्यप्रणाली में सुधार के उपाय किए जा सकते हैं। कुछ उपचार विकल्पों में दवाएं, मनोचिकित्सा, शिक्षा या प्रशिक्षण या इनका मिश्रण शामिल है। एडीएचडी के लक्षणों को अक्सर तीन श्रेणियों में बांटा जाता है : ध्यान न देना, जरूरत से अधिक सक्रियता और असंतोष। चीनी, टीवी देखने, गरीबी या फूड एलर्जी से एडीएचडी नहीं होता।"

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डॉ. अग्रवाल ने बताया, "शिक्षा, समर्थन और रचनात्मकता से ऐसे बच्चों में इस स्थिति का प्रबंधन करने में काफी मदद मिल सकती है। यद्यपि एडीएचडी वाले बच्चों के साथ ठीक से रह पाना एक चुनौती है, लेकिन समय को प्राथमिकता देने और हर चीज टाइम टेबल के हिसाब से करने पर मदद मिल सकती है। माता-पिता को यह याद रखना चाहिए कि एडीएचडी से आपके बच्चे की बुद्धि या क्षमता का पता नहीं चल पाता है। बच्चे की शक्तियों का पता लगाएं और बेहतर परिणामों के लिए उन शक्तियों पर ध्यान दें।"

अगली स्लाइड में पढ़े कैसे करें इस बीमारी से बच्चों का बचाव

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