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सफेद मोतियाबिंद का नवीनतम इलाज 'फेमटोसेकेंड'

आज भी मोतियाबिंद ही दुनियाभर में दृष्टिहीनता का सबसे बड़ा कारण है, लेकिन नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में जो प्रगति हुई है, उसने इसका इलाज आसान कर दिया है। सफेद मोतियाबिंद का नवीनतम इलाज लेजर तकनीक 'फेमटोसेकेंड' के रूप में सामने आया है। 

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: July 14, 2018 14:53 IST
मोतियाबिंद- India TV Hindi
मोतियाबिंद

हेल्थ डेस्क: आज भी मोतियाबिंद ही दुनियाभर में दृष्टिहीनता का सबसे बड़ा कारण है, लेकिन नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में जो प्रगति हुई है, उसने इसका इलाज आसान कर दिया है। सफेद मोतियाबिंद का नवीनतम इलाज लेजर तकनीक 'फेमटोसेकेंड' के रूप में सामने आया है।

इस तकनीक के अंतर्गत आंखों में एक उच्च विभेदन (रिजॉल्यूशन) वाली छवि निर्मित होती है जो लेजर के लिए मार्गदर्शन देने का काम करती है। इस तकनीक के आ जाने से पूर्व नियोजित कॉर्निया छेदन आसान हो गया है। लेजर सर्जरी के दौरान अग्रवर्ती लेंस कैप्सूल यानी कैप्सूलोरेक्सिस में एक सुकेंद्रित, अनुकूलतम आकार का मामूली सा छिद्र किया जाता है और फिर लेंस को लेजर किरणों का इस्तेमाल करते हुए नरम और द्रवित कर दिया जाता है। इसके बाद लेंस को छोटे कणों में तोड़ा जाता है।

सेंटर फॉर साइट के निदेशक डॉ. महिपाल एस. सचदेव का कहना है कि शल्य चिकित्सक को इस नई प्रक्रिया का सबसे बड़ा फायदा यह मिलता है कि उसे लेंस को तराशने और काटने जैसे तकनीकी रूप से कठिन काम नहीं करने पड़ते हैं। 

उन्होंने कहा कि इस तकनीक में फेको-एमलसिफिकेशन ऊर्जा को 43 प्रतिशत कम कर दिया जाता है और फेको-समय को 51 प्रतिशत घटाया जाता है। इससे ज्वलनशीलता में कमी आती है और आंखों के पहले वाली स्थिति में लौटने की प्रक्रिया में तेजी आ जाती है। साथ ही जख्म की स्थिर संरचना संक्रमण दर को भी न्यूनतम कर देती है। देखने में भी यह अधिक बेहतर परिणाम देता हुआ प्रतीत होता है, क्योंकि सर्जरी की प्रक्रिया स्पष्ट और सटीक होती है।

सफेद मोतिया के इलाज की इस नवीनतम प्रौद्योगिकी के माध्यम से हासिल होने वाला एक अन्य महवपूर्ण लाभ यह है कि यह प्रीमियम आईओएल जैसे अनुकूलित (क्रिस्टैलेंस) एवं बहुकेद्रीय लेंसों के साथ और भी बेहतर परिणाम देता है। स्पष्ट लेजर तकनीक के साथ इन लेंसों से मिलने वाली कुल दृष्टि का स्तर बेहतर हो जाता है। इसके अलावा दृष्टि वैषम्य जैसी पहले से ही मौजूद आंखों की समस्याओं का सामना एलआरआई या लिंबल रिलैक्सिंग इंसिजंस के सुनियोजन के सहारे किया जा सकता है। इससे यह संपूर्ण सर्जरी मरीज की जरूरतों को पूरा करने की दृष्टि से अनुकूल हो जाती है और उसे सर्वोत्तम ²ष्टि प्रदान करती है।

डॉ. सचदेव के अनुसार, लेजर प्रक्रिया के इस्तेमाल से जख्म तेजी से भरते हैं, बेहतर ²ष्टि क्षमता हासिल होती है, संक्रमण एवं अन्य जटिलताओं के पैदा होने का खतरा नहीं के बराबर होता है तथा जख्म की संरचना स्थिर रहा करती है। इसके अलावा इससे आईओएल को स्पष्ट रूप से प्रवेश कराए जाने, दृष्टि वैषम्य जैसी समस्या में सुधार और प्रत्येक मरीज के सुगमता से स्वस्थ होने के फायदे हैं।(सावधान! डायबिटीज से हो सकती है फेफड़े की बीमारी)

ज्यादातर नेत्र सर्जन इस नई तकनीक को अधिक सुरक्षित और सटीक मानते हैं। दुनियाभर के विशेषज्ञ इस बात को लेकर सहमत हैं कि इससे पहले के मुकाबले बेहतर परिणाम हासिल है और मरीजों की दृष्टि से भी फेमटोसेकेंड लेजर अधिक आकर्षक एवं सुविधाजनक साबित हुआ है।(ब्रश करते वक्त मसूड़ो से आता है खून, तो फिटकरी का इस तरह करें इस्तेमाल)

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