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70 फीसदी माओं के लिए ब्रेस्टफीडिंग कराना सबसे कठिन अनुभव: सर्वे

हाल ही में हुए एक सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है। मॉम्सप्रेसो और मेडेला द्वारा किए गए 'भारतीय माताओं के लिए स्तनपान चुनौतियां' शीर्षक वाले सर्वेक्षण के अनुसार, 78 प्रतिशत माताओं ने अपने बच्चों को एक वर्ष या उससे अधिक समय तक स्तनपान कराया है।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : August 07, 2018 6:49 IST
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हेल्थ डेस्क: देश में 70 प्रतिशत माताओं के लिए स्तनपान कराना एक कठिन अनुभव रहा। हाल ही में हुए एक सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है। मॉम्सप्रेसो और मेडेला द्वारा किए गए 'भारतीय माताओं के लिए स्तनपान चुनौतियां' शीर्षक वाले सर्वेक्षण के अनुसार, 78 प्रतिशत माताओं ने अपने बच्चों को एक वर्ष या उससे अधिक समय तक स्तनपान कराया है।

स्तनपान कराने के लिए मुख्य उद्देश्य थे; स्तनपान के कारण बच्चे को स्वास्थ्य लाभ (98.6 फीसदी), माता और शिशु के बीच नजदीकी संबंध (73.4 फीसदी), स्तनपान कराने वाली मां का स्वास्थ्य लाभ (57.5 फीसदी) और स्तनपान के कारण वजन कम होना (39.7 फीसदी)।

यह सर्वेक्षण महिलाओं के लिए भारत के सबसे बड़े यूजर जेनेरेटेड कंटेंट प्लेटफॉर्म मॉम्सप्रेसो और माताओं के दूध के बारे में शोधकर्ताओ के साथ काम करने वाली कंपनी मेडेला के सहयोग से किया गया।

सर्वे में शामिल हुई इतनी भारतीय महिलाएं

इस सर्वेक्षण में 510 भारतीय महिलाओं को शामिल किया गया। स्तनपान कराने के दौरान माताओं के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में उनसे बात की गई और सलाह ली गई।

अध्ययन में भारतीय माताओं के सामने आने वाली छह मुख्य चुनौतियों के बारे में इस सर्वे में बात की गई। इन छह चुनौतियों में शुरुआती दिनों की समस्याएं जैसे दूध न आने की समस्या, स्तन का आकार (34.7 फीसदी), बीच रात में जागने से थकावट, बहुत ज्यादा फीडिंग सेशन और लंबे फीडिंग सेशन (31.8 फीसदी), बच्चे का काटना (26.61 फीसदी), दूध आपूर्ति की समस्या (22.7 फीसदी), सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान (17.81 फीसदी) और आंशिक अवसाद (17.42 फीसदी) जैसी समस्याएं शामिल थीं।

अध्ययन के मुताबिक, 38 प्रतिशत माताओं का कहना है कि बच्चे के जन्म के शुरुआती दिनों में उनके स्तनपान का सफर का सबसे चुनौतीपूर्ण समय था।

सर्वेक्षण में बताया गया कि बाहरी कारक स्तनपान कराने वाली माताओं पर गहरा असर डाल सकते हैं और उन्हें एक सकारात्मक, सहायक माहौल प्रदान करके उन्हें एक ऐसी सहायता दी जा सकती है, जिससे वे अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ समझौता किए बगैर अपने बच्चों को उचित पोषण प्रदान कर सकें।

(इनपुट आईएएनएस)

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