आज ऑटिस्टिक प्राइड डे है यानि पूरी दुनिया में इस बीमारी से पीड़ित बच्चे, फैमिली और उनके आसपास के लोगों को इस बीमारी को लेकर जागरूक किया जाएगा। जब एक बच्चा बड़ा होता है तो उसी के साथ-साथ उसका विकास भी होता जाता है। जैसे कि 6 माह का बच्चा मुस्कुराने लगता है या फिर कई बच्चे जल्दी ही चलने लगते है। लेकिन अगर आपका बच्चा ये चीजे जरुरत से ज्यादा देर कर रहा है तो उसपर ध्यान देना बहुत ही जरुरी है। उसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर हो सकता है। भारत में करीब एक करोड़ बच्चे इस डिसऑर्डर की चपेट में है। जानें इसके लक्षण और क्या होता है ये।
ऑटिज्म एक ऐसी समस्या है, जिससे ग्रस्त लोगों में व्यवहार से लेकर कई तरह की दिक्कतें होती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे लोगों की स्थिति में सामाजिक स्वीकार्यता से सुधार लाया जा सकता है। ऑटिज्म के शुरुआती लक्षण 1-3 साल के बच्चों में नजर आ जाते हैं। 18 जून को ऑटिस्टिक प्राइड डे होता है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों को जागरुक करने के लिए मनाया जाता है। ऑटिज्म वो अवस्था है जो बर्फी फिल्म में प्रियंका चोपड़ा और माइ नेम इज खान में शाहरुख खान को थी।
लखनऊ के केजीएमयू स्थित पीडिऐट्रिक साइकायट्रिस्ट डॉ. अमित आर्या ने बताया कि ऑटिज्म की समस्या का इलाज जितनी जल्दी शुरू हो जाए उतने अच्छे परिणाम मिलते हैं। इस समस्या के लिए आनुवांशिक और पर्यावरण संबंधी कई कारण जिम्मेदार होते हैं। डॉ. अमित आर्या ने बताया कि शोर शराबे के शौकीन लोग अक्सर सड़क के आसपास अपना घर बनाते हैं। लेकिन ऐसे लोगों को चौकन्ना होने की जरूरत है क्योंकि ऐसी जगहों पर रहने वालों के बच्चों में ऑटिज्म होने का खतरा दो गुना तक बढ़ सकता है। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है।
क्या है ऑटिज्म?
यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जो बातचीत और दूसरे लोगों से व्यवहार करने की क्षमता को सीमित कर देता है। हर एक बच्चे में इसके अलग-अलग लक्षण होते हैं। कुछ बच्चे बहुत जीनियस होते हैं। कुछ को सीखने-समझने में भी परेशानी होती है। ये बच्चे बार-बार एक ही तरह का व्यवहार करते हैं। 40 प्रतिशत ऑटिस्टिक बच्चे बोल नहीं पाते। औसतन 68 में से 1 बच्चा ऑटिज्म का शिकार होता है, क्यों होता है पता नहीं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इंफेंक्शन, प्रेग्नेंसी के दौरान मां की डायट और जेनेटिक्स इसकी वजह हो सकती है।क्या करें पैरंट्स
प्रेग्नेंसी में महिला को ऐल्कॉहॉल और तंबाकू से बचना चाहिए।
ईएनटी के अलावा साइकायट्रिस्ट, साइकोलॉजिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट, स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट, फिजियोथेरेपिस्ट मददगार होते हैं।
ऑटिस्टिक बच्चे धीरे-धीरे बात को समझते हैं। ऐसे में पहले उन्हें समझाएं फिर बाद में बोलना सिखाएं।
ऑटिस्टिक बच्चे सोशल सर्कल में जाने से परेशान हो जाते हैं, लेकिन उन्हें आउटिंग पर जरूर ले जाएं।
ऑटिस्टिक बच्चों से बातें करें और उन्हें किसी चर्चा का हिस्सा बनाएं।
खेल में उन्हें नए शब्द सिखाने की कोशिश करें। जितना हो सके बच्चों को तनाव से दूर रखें।
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