कंपन आने का मतलब हमेशा यह नहीं होता है कि आपको पार्किंसंस है।
कंपन पीडी के सबसे आम और प्रारंभिक लक्षणों में से एक है। लेकिन, किसी भी व्यक्ति द्वारा अनुभव किए जाने वाले प्रत्येक कंपन का मतलब यह नहीं हो सकता कि वह पीडी से ग्रस्त है। आवश्यक कंपन (ईटी) के दौरान भी ऐसा ही कंपन अनुभव होता है जो एक और गति विकार है असल में, ईटी और पीडी अलग-अलग स्थितियां हैं लेकिन अक्सर एक-दूसरे के साथ भ्रमित हो जाती हैं क्योंकि वे कई विशेषताएं साझा करते हैं। फिर इसमें अंतर कैसे करें?
आवश्यक कंपन आम तौर पर एक आनुवंशिक बीमारी है जिसकी विशेषता केवल कंपन है। आमतौर पर ईटी से प्रभावित होने वाले क्षेत्र हाथ, भुजाएं, सिर, और कभी-कभी आवाज है। ये कंपन शरीर को सममित रूप से प्रभावित करते हैं, जिसका अर्थ है शरीर के दोनों पक्ष समान रूप से प्रभावित होते हैं। हालांकि ईटी से जीवन प्रत्याशा प्रभावित नहीं होती है, लेकिन इससे निश्चित रूप से सामान्य गतिविधियां प्रभावित हो सकती है, जैसे कि लिखना और खाना आदि। पीडी के दौरान कंपन शरीर के केवल एक ओर अनुभव होता हैं। इसके अलावा, पार्किंसंस की बीमारी की विशेषता संबंद्ध कठोरता, गतिविधियों में धीमापन है, जो आवश्यक कंपन में नहीं दिखाई देते है। हालांकि, किसी भी तरह की कंपन वाली भावना के मामले में, न्यूरोलॉजिस्ट से मिलने की सलाह दी जाती है।
क्या सर्जरी से भी ये ठीक हो सकता है?"
हालांकि पार्किंसंस की बीमारी का कोई इलाज नहीं है, फिर भी लक्षणों की पहचान करके और सही समय पर उचित चिकित्सा उपचार आरंभ करने से बीमारी के लक्षणों को बहुत अच्छी तरह नियंत्रित किया जा सकता है। बीमारी की आगामी अवस्था में चिकित्सा उपचार के दौरान कभी-कभी गंभीर और असहनीय दुष्प्रभाव होते हैं। इस समय, गहन मस्तिष्क उत्तेजना (डीबीएस) शल्य-चिकित्सा जैसी प्रक्रियाओं के साथ, इस बीमारी से ग्रस्त लोग जीवन को समुचित रूप से जी सकते हैं।
पार्किन्संस रोग (पीडी) के लक्षणों को दूर करने के लिए डीबीएस को सुरक्षित और अच्छी तरह से सहनीय शल्य प्रक्रिया माना जाता है जिसमें मृत्यु संख्या लगभग शून्य होती है और जोखिम कम होता है। आम तौर पर शल्यक्रिया का प्रयोग कुछ न्यूरोलॉजिकल लक्षणों जैसे कि कंपन, कठोरता, कडापन, धीमी शारीरिक गतिविधि और पैदल चलने सम्बन्धी समस्याओं आदि से ग्रस्त रोगी को उपचार और राहत देने के लिए किया जाता है।
डीबीएस को सुरक्षित माना जाता है क्योंकि इसमें मस्तिष्क के स्वस्थ ऊतकों को नुकसान नहीं पहुंचाता है, बल्कि इसमें पीडी के लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए मस्तिष्क के कुछ विशिष्ट क्षेत्रों को उत्तेजित किया जाता है।
बुनियादी तौर पर शल्य चिकित्सा के दौरान, न्यूरोस्टिमुलेटर नामक एक बैटरी संचालित चिकित्सा उपकरण (जो कुछ-कुछ हृदय पेसमेकर जैसा होता है) अत्यंत महीन इलेक्ट्रोड्स से जुड़ा होता है जो मस्तिष्क में प्रत्यारोपित होते हैं। डिवाइस मस्तिष्क में लक्षित क्षेत्रों को विद्युत उत्तेजना देता है जो असामान्य गति और पीडी के झटके को नियंत्रित करता है। इस प्रक्रिया का संचालन करने से पहले, एक न्यूरोसर्जन मेग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) और कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन का उपयोग करता है, जिसमें मस्तिष्क के भीतर सटीक लक्ष्य की पहचान करने और पता लगाने के लिए इलेक्ट्रोड को रखा जाता है। एक बार प्रणाली चालू हो जाने पर, विद्युत आवेगों को न्यूरोस्टिम्युलेटर से मस्तिष्क तक भेजा जाता है। यह शल्यक्रिया स्थानीय निश्चेतना के तहत की जाती है, और अधिकांश शल्यक्रियाओं में रोगी पूरी तरह से होश में रहते हैं। एक न्यूरोसर्जन और एक न्यूरोलॉजिस्ट की टीम द्वारा शल्यक्रिया चलते हुए भी मस्तिष्क के अंदर इलेक्ट्रोड के सटीक रूप से लगने का मूल्यांकन किया जाता है।
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