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इस वायु प्रदूषण से हो सकता है कैंसर, पढ़िए पूरी खबर

वायु प्रदूषण और फेफड़ों के कैंसर के परस्पर संबंध के बारे में दशकों से जानकारी है। विज्ञान ने यह साबित किया है कि वायु प्रदूषण कैंसर के जोखिम को कई गुना बढ़ाता है

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: November 28, 2018 8:43 IST
air pollution- India TV Hindi
air pollution

नई दिल्ली: वायु प्रदूषण और फेफड़ों के कैंसर के परस्पर संबंध के बारे में दशकों से जानकारी है। विज्ञान ने यह साबित किया है कि वायु प्रदूषण कैंसर के जोखिम को कई गुना बढ़ाता है और अत्यधिक वायु प्रदूषण फेफड़े के अलावा दूसरे अन्य तरह के कैंसर का कारण बन सकता है। 2013 में 'इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी)' ने बाहरी वायु प्रदूषण को कैंसर का प्रमुख कारण माना था। 

प्रदूषण इसलिए, कैंसरकारी माना जाता है क्योंकि यह धूम्रपान और मोटापे की तरह प्रत्यक्ष रूप से कैंसर के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है। यह भी महत्वपूर्ण है कि वायु प्रदूषण सभी को प्रभावित करता है।

शोध से यह सामने आया है कि हवा में मौजूद धूल के महीन कण जिन्हें 'पार्टिकुलेट मैटर' या पीएम कहा जाता है, वायु प्रदूषण का एक बड़ा हिस्सा बनते हैं। सबसे महीन आकार का कण, जो कि एक मीटर के 25 लाखवें हिस्से से भी छोटा होता है प्रदूषण की वजह से होने वाले फेफड़ों के कैंसर की प्रमुख वजह है। 

अनेक अनुसंधानों और मैटा एनेलिसिस से यह साफ हो गया है कि वायु में पीएम की मात्रा 2.5 से अधिक होने के साथ ही फेफड़ों के कैंसर का जोखिम भी बढ़ जाता है।

मैक्स हेल्थकेयर के ओंकोलॉजी विभाग में प्रींसिपल कंस्लटेंट डॉ. गगन सैनी ने कहा, "पीएम 2.5 से होने वाले नुकसान का प्रमाण फ्री रैडिकल, मैटल और ऑर्गेनिक कोंपोनेंट के रूप में दिखाई देता है। ये फेफड़ों के जरिए आसानी से हमारे रक्त में घुलकर फेफड़ों की कोशिकाओं को क्षति पहुंचाने के अलावा उन्हें ऑक्सीडाइज भी करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप शरीर को नुकसान पहुंचता है। पीएम 2.5 सतह में आयरन, कॉपर, जिंक, मैंगनीज तथा अन्य धात्विक पदार्थ और नुकसानकारी पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन एवं लिपोपॉलीसैकराइड आदि शामिल होते हैं।"

डॉ. सैनी ने कहा, " ये पदार्थ फेफड़ों में फ्री रैडिकल बनने की प्रक्रिया को और बढ़ा सकते हैं तथा स्वस्थ कोशिकाओं में मौजूद डीएनए के लिए भी नुकसान दायक होते हैं। पीएम 2.5 शरीर में इफ्लेमेशन का कारण भी होता है। इंफ्लेमेशन दरअसल, रोजमर्रा के संक्रमणों से निपटने की शरीर की प्रक्रिया है लेकिन पीएम 2.5 इसे अस्वस्थकर तरीके से बढ़ावा देती है और केमिकल एक्टीवेशन बढ़ जाता है। यह कोशिकाओं में असामान्य तरीके से विभाजन कर कैंसर का शुरूआती कारण बनता है।"

फेफड़ों के कैंसर संबंधी आंकड़ों के अध्ययन से कैंसर के 80,000 नए मामले सामने आए हैं। इनमें धूम्रपान नहीं करने वाले भी शामिल हैं और ऐसे लोगों में कैंसर के मामले 30 से 40 फीसदी तक बढ़े हैं। इसके अलावा, मोटापा या मद्यपान भी कारण हो सकता है, लेकिन सबसे अधिक जोखिम वायु प्रदूषण से है।

डॉ. सैनी का कहना है कि दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में फेफड़ों के मामले 2013-14 में 940 से दोगुने बढ़कर 2015-16 में 2,082 तक जा पहुंचे हैं, जो कि शहर मे वायु प्रदूषण में वृद्धि का सूचक है। धूम्रपान नहीं करने वाले लोगों में फेफड़ों के कैंसर के मरीजों में 30 से 40 वर्ष की आयुवर्ग के युवा, अधिकतर महिलाएं और साथ ही एडवांस कैंसर से ग्रस्त धुम्रपान न करने वाले लोग शामिल हैं। 

डॉक्टर सैनी ने कहा, "मैं अपने अनुभव से यह कह सकता हूं कि फेफड़ों के कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और मैं लोगों से इन मामलों की अनदेखी नहीं करने का अनुरोध करता हूं। साथ ही, यह भी सलाह देता हूं कि वे इसकी वजह से सेहत के लिए पैदा होने वाले खतरों से बचाव के लिए तत्काल सावधानी बरतें।"

वायु प्रदूषण न सिर्फ फेफड़ों के कैंसर से संबंधित है बल्कि यह स्तन कैंसर, जिगर के कैंसर और अग्नाशय के कैंसर से भी जुड़ा है। वायु प्रदूषण मुख और गले के कैंसर का भी कारण बनता है। ऐसे में मनुष्यों के लिए एकमात्र रास्ता यही बचा है कि वायु प्रदूषण से मिलकर मुकाबला किया जाए। संभवत: इसके लिए रणनीति यह हो सकती है कि इसे एक बार में समाप्त करने की बजाए इसमें धीरे-धीरे प्रदूषकों को घटाने के प्रयास किए जाएं और इस संबंध में सख्त कानून भी बनाए जाएं।

ये पौधे वायु को कर देंगे शुद्ध और फिल्टर

हवा को फिल्टर करने वाले पौधे

जहरीली गैसों को कम करने के लिए कुछ पौधे बेहद काम आ सकते हैं। इन पौधों को एयर फिल्टरिंग प्लांट भी कहा जाता है। खुजली, जलन, लगातार जुकाम, एलर्जी और आंखों में जलन से बचाव में ये पौधे आपकी सहायता करेंगे। भारत में इस तरह के पौधों में एलो वेरा, लिली, स्नेक प्लांट (नाग पौधा), पाइन प्लांट (देवदार का पौधा) मनी प्लांट, अरीका पाम और इंग्लिश आइवी।

एरेका पाम
एरेका पाम एक ऐसा पौधा है जो कार्बन डाई ऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदल देता है। हर व्यक्ति के लिए इस तरह के एक पौधे की जरूरत होती है जिसकी ऊंचाई कंधे के बराबर होनी चाहिेए। इस पौधे की देखभाल के लिए पत्तियों को हर रोज साफ करना जरूरी है। इसके अलावा हर तीन-चार महीने में इनको बाहर रखने की भी जरूरत पड़ती है। हवा को फिल्टर कर उसे शुद्ध बनाने में ये पौधा सहायक है। नम मिट्टी का प्रयोग करें और सतह के थोड़े नीचे मिट्टी के सूखते ही पौधे को पानी दें।

मनी प्लांट
मनी प्लांट एक बेल है। इसकी एक पत्ती का आकार 7 से 10 सेंटीमीटर तक लंबा होता है। यह पौधा अधिकतर भारतीय घरों में आसानी से मिल जाता है। इसकी ख़ास बात है कि यह पौधा बहुत कम रोशनी में भी जिंदा रह सकता है और इसे किसी खाली बोतल में भी उगाया ज सकता है। इस पौधे में वायु में मौज़ूद कार्बन डाई ऑक्साइड को ग्रहण करने की क्षमता होती है और यह ऑक्सीजन बाहर निकालता है। मनी प्लांट हवा में सीओ2 कम कर हमारे सांस लेने के लिए शुद्ध ऑक्सीजन देता है।

एलो वेरा
एलो वेरा में कई सारे औषधीय गुण होते हैं। इस पौधे को उगने के लिए पानी की जरूरत भी कम होती है। इसके पत्ते काफी मोटे और मजबूत होते हैं। पत्ते के अंदरूनी भाग को काटने पर एक तरह का रस निकलता है। इस रस से का इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों के इलाज में होता है। इसके अलावा ख़ास बात है कि इस पौधे को आसानी से घर में लगा सकते हैं जो हवा को शुद्ध रखता है।

स्नेक प्लांट
इसे हिंदी में नाग पौधा कहा जा सकता है। इस पौधे को बढ़ने के लिए बहुत कम धूप की जरूरत होती है। इसके अलावा पानी की भी जरूरत ज्यादा नहीं होती। हवा को फिल्टर करने वाले इस पौधे को आप आसानी से अपने कमरे या ऑफिस केबिन में एक कोने में उगा सकते हैं।

पाइन प्लांट
घर की हवा को शुद्ध बनाने के लिए देवदार का पौधा काफी मशहूर है। इस पौधे की पत्तियां छोटी-छोटी होती हैं। इसे बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती। लेकिन समय-समय पर इसकी काट-छांट करने की जरूरत होती है।

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