Bhishma Panchak: आमतौर पर सनातन धर्म में पंचक लगना अशुभ माना जाता है। पंचक लगते ही शुभ और मांगलिक कार्यों पर पाबंदी लग जाती है। हालांकि ज्योतिषविदों का कहना है कि सभी पंचक अशुभ नहीं होते हैं। सामान्य पंचक और भीष्म पंचक में बड़ा फर्क है। इस बार भीष्म पंचक 04 नंवबर से लगने वाला है। ज्योतिष शास्त्र में भीष्म पंचक को बहुत ही शुभ बताया गया है। भीष्म पंचक में व्रत और पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
भीष्म पंचक का व्रत कार्तिक शुक्ल एकादशी से शुरू होता है और पूर्णिमा तक रहता है। कार्तिक पूर्णिमा पर दान-स्नान के बाद ही व्रत का समापन होता है। कहते हैं कि इस दिन भीष्म पितामह ने भी व्रत किया था। तभी से यह भीष्म पंचक के नाम से लोकप्रिय हुआ।
कितने प्रकार के होते हैं पंचक?
1। रोग पंचक
2। राज पंचक
3 अग्नि पंचक
4। मृत्यु पंचक
5। चोर पंचक
6। बुधवार और गुरुवार पंचक
कैसे शुरू हुए भीष्म पंचक?
महाभारत में पांडवों की जीत के बाद भगवान श्री कृष्ण पांडवों को भीष्म पितामह के पास ले गए। श्री कृष्ण ने पितामह से पांडवों को ज्ञान देने को कहा। उस वक्त पितामह शरसैया पर लेटे हुए थे। फिर भी उन्होंने कृष्ण का अनुरोध स्वीकार किया और पांडवों को राज धर्म, वर्ण धर्म और मोक्ष धर्म का अनमोल ज्ञान दिया। ऐसा कहा जाता है कि पितामह के ज्ञान देने का ये सिलसिला एकादशी से पूर्णिमा तक निरंतर चलता रहा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने पितामह से कहा कि आपने जो ज्ञान इन पांच दिनों में पांडवों को दिया है, इससे ये अवधि अत्यंत मंगलकारी हो गई है। इसलिए आज से इन पांच दिनों को भीष्म पंचक के नाम से जाना जाएगा।
पंचक लगने के बाद शुभ और मांगलिक कार्यों को करने की मनाही होती है। इन दिनों में शादी-विवाह, भवन निर्माण, मुंडन आदि जैसे शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। हालांकि भीष्म पंचक इनसे बिल्कुल अलग है। इसमें किसी प्रकार के शुभ कार्य पर पाबंदी नहीं होती है।
भीष्म पंचक की पूजन विधि
भीष्म पंचक का व्रत रखने वाले लोग एकादशी पर स्नानादि के बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें और भगवान की पूजा-पाठ करें। इसके बाद निमित्त व्रत का संकल्प लें। दीवार पर मिट्टी से सर्वतोभद्र की वेदी बनाकर कलश की स्थापना करें। फिर ''ओम विष्णवे नम:'' मंत्र का जाप करें और तिल व जौ की 108 आहुतियां देकर हवन करें। इसके बाद व्रत शुरू होने से समापन तक रोजाना दीपक प्रज्वलित करें।
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