आज भारत के महान समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर की जयंती है। आज से काफी साल पहले 26 सितंबर 1820 के दिन भारतीय समाज सुधारक, महान स्वतंत्रता सेनानी, प्रोफेसर ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जन्म हुआ था। ईश्वर चंद्र विद्यासागर के बार में बचपन में ही आपने किताबों में पढ़ा होगा। भारत के सभी प्राइमरी स्कूलों के सिलेबस में पढ़ाई के दौरान ईश्वरचंद्र विद्यासागर के बारे में बताया जाता है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है कि उनके आदर्शों का प्रभाव बचपन से ही बच्चों पर पड़े। ईश्वर का जन्म 26 सितंबर 1820 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। लेकिन उन्होंने कभी इस चीज का प्रभाव अपने ऊपर पड़ने नहीं दिया उन्होंने अपनी पढ़ाई स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर की क्योंकि उनके परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह गैस या दूसरी कोई लाइट खरीद सके। ईश्वर चंद्र ने शिक्षा की दुनिया में ऐसा मुकाम हासिल किया जो अपने आप में एक मिसाल बन गया।
कम उम्र में ही बहुत कुछ हासिल कर लिया था इश्वर चंद्र ने
1829 में वे कोलकाता के संस्कृत कॉलेज में पढ़ने आए। यहां 1839 में एक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें पढ़ने में तेज होने के कारण कॉलेज की तरफ से उन्हें विद्यासागर उपनाम दिया गया। करीब 12 साल पढ़ाई करने के बाद कलकत्ता के 'संस्कृत कॉलेज' में उन्हें संस्कृत के प्रोफेसर की नौकरी मिल गई। फिर प्रोफेसर के पद पर काफी समय तक काम करने की वजह से उन्हें उसी कॉलेज का प्रिंसिपल बना दिया गया।जात-पात और स्त्री की शिक्षा को लेकर काफी काम किया
इश्वर चंद्र शुरू से ही लड़कियों की शिक्षा को लेकर आवाज उठाते रहे थे। साथ ही भारतीय समाज की जड़ में बसा जात-पात जैसी सामाजिक बुराईयों के खिलाफ हमेशा इश्वर चंद्र ने लोगों को जागरूक बनाया।
विद्यासागर के निधन पर रवींद्र नाथ टैगोर ने कही थी ये बात
ईश्वर चंद्र विद्यासागर के निधन पर रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा था, ‘यह आश्चर्य करने वाली बात है कि भगवान ने चार करोड़ बंगाली बनाई लेकिन इंसान एक ही बनाया'। ईश्वर चंद्र के बारे में एक बात काफी मशहूर था कि वो समय के बड़े पक्के थे। एक बार उन्हें लंदन में सभा को संबोधित करना था। जब वो वहां पहुंचे तो सभा के बाहर काफी लोग खड़े थे उन्होंने बाहर खड़े लोगों से पूछा क्यां हुआ आपलोग इस तरह बाहर हैं तो पूछने पर पता चला हॉल साफ नहीं है क्योंकि सफाई कर्मचारी पहुंचे नहीं है। फिर क्या था उन्होंने झाड़ू उठाई और सफाई करने लगे और थोड़ी ही देर में पूरा हॉल साफ हो गया। ईश्वरचंद्र की यही सभी चीजें उन्हें दूसरों से अलग बनाती थी।
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