नई दिल्ली: नामवर सिंह सिर्फ एक साहित्यकार या हिंदी साहित्य के आलोचक के रूप में नहीं जाने जाते थे बल्कि वह एक युग थे जिसका आज अंत हो गया। उनकी लेखनी की विशेषता ही उन्हें दूसरे साहित्यकार से अलग करती थी। वह हिन्दी के शीर्षस्थ शोधकार-समालोचक, निबन्धकार तथा मूर्द्धन्य सांस्कृतिक-ऐतिहासिक उपन्यास लेखक 'हजारी प्रसाद द्विवेदी' के प्रिय शिष्य भी थे। देश के प्रख्यात हिंदी साहित्य के आलोचक नामवर सिंह ने मंगलवार की रात AIIMS हॉस्पिटल में आखिरी सांस ली। नामवर जी आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी हिन्दी साहित्य की रचनाएं आज भी हमारे दिल और दिमाग पर राज करती हैं।
इस दुख भरे पल में कहने के लिए तो बहुत कुछ है लेकिन आज हम उनकी सिर्फ उन प्रसिद्ध रचनाओं के बारे में बात करेंगे जिसने पूरी दुनिया में अपनी एक अलग छाप छोड़ दी है। नामवर सिंह एकमात्र ऐसे साहित्यकार थे जिसने साहित्य में व्याकरण, छायावाद, वाद-विवाद से लेकर शीतयु्द्ध, इतिहास से लेकर समकालीन बातों का भी जिक्र किया। इससे आप ये अनुमान लगा सकते हैं कि नामवर जी ने साहित्य के हर पहलू को दुनिया के सामने रखा।
नामवर सिंह की प्रमुख रचनाएं:-
बात बात में बात
इस किताब के माध्यम से नामवर सिंह ने बताया कि एक साहित्यकार के तौर पर समाज में क्या भूमिका होती है। साथ ही साहित्यकार को समाज के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं? नामवर सिंह कहते हैं कि आलोचक वही काम करता है जो फौज में, जिसे ‘सैपर्स एण्ड माइनर्स’ करते हैं, इंजीनियर करता है। फौज के मार्च करने से पहले झाड़-जंगल साफ करके नदी-नाले पर जरूरी पुल बनाते हुए फौज को आगे बढ़ने के लिए रास्ता तैयार करने का जोखिम उठाए, सड़क बनाए। साहित्य में इस रूपक के माध्यम से मैं कहूँ कि जहाँ विचारों, विचारधाराओं, राजनीतिक सामाजिक प्रश्नों आदि के बारे में उलझनें हैं, वह अपने विचारों के माध्यम से थोड़ा सुलझाए, कोई बना-बनाया विचार न दे ताकि रचनाकारों को स्वयं अपने लिए सुविधा हो। ये मैं आलोचक के लिए ‘सैपर्स एण्ड माइनर्स’ की भूमिका मानता हूँ क्योंकि आगे-आगे वही चलता है और पहले वही मारा जाता है। दुश्मन आ रहा है तो जोखिम उठाने के लिए सबसे पहले मोर्चे पर वही बढ़ता है और ज़ख्मी होने का ख़तरा भी वही उठाता है। यह काम आलोचक करता है और उसे करना भी चाहिए।
कविता के नए प्रतिमान
इस किताब में कविता के नए प्रतिमान के साथ-साथ समकालीन तथ्य को ध्यान में रखते हुए हिंदी साहित्य की आलोचना की गई है। साथ ही इसके अंतर्गत व्याप्त मूल्यांध वातावरण का विश्लेषण करते हुए उन काव्यमूल्यों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है जो आज की स्थिति के लिए प्रासंगिक हैं।
छायावाद
इस पुस्तक के अंतर्गत यह बताने का प्रयास किया गया है कि कैसे जब एक लेखक कुछ लिखता हो तो वह कई तरह की चीजों से प्रभावित होता है। जैसे अनुभव, आसपास की घटित हो रही घटनाएं, परिवार, समाज आदि। और यह सबकुछ लेखक के लेखनी में साफ दिखाई देता है।
इतिहास और आलोचना
इस किताब के माध्यम से नामवर सिंह ने यह बात साफ तौर पर स्पष्ट कर दिया कि साहित्य के बारे में उतनी ही सच है जितनी जीवन का सत्य। हिंदी में आज इतिहास लिखने के लिए यदि विशेष उत्साह दिखाई पड़ रहा है तो यही समझा जाएगा कि स्वराज्य-प्राप्ति के बाद सारा भारत जिस प्रकार सभी क्षेत्रों में इतिहास-निर्माण के लिए उत्साहित है उसी प्रकार हिंदी के विद्वान एवं साहित्यकार भी अपना ऐतिहासिक दायित्व निभाने के लिए प्रयत्नशील हैं।
दूसरी परम्परा की खोज
'दूसरी परम्परा की खोज' आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के माध्यम से भारतीय संस्कृति और साहित्य की उस लोकोन्मुखी क्रान्तिकारी परम्परा को खोजने का सर्जनात्मक प्रयास है। इस किताब में कबीर के विद्रोह से लेकर सूरदास और कालिदास के लेखन का उल्लेख किया गया है।
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