सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर सिंह जी का 400वां प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। गुरु गुरु तेग बहादुर सिंह जी को हिंद की चादर यानी भारत की ढाल भी कहा जाता है। उनकी शहादत को हर साल 24 नवबंर को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। गुरु तेग बहादुर सिंह जी का जन्म अमृतसर में 18 अप्रैल 1621 को हुआ था। उनका असली नाम त्यागमल था। सिखों के आठवें गुरु श्री हरिकृष्ण जी की अकाल मृत्यु के बाद श्री तेग बहादुर जी को गुरु बनाया गया।
साल 1675 में दिल्ली में मुगल बादशाह औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर जी को इस्लाम कबूल करने को कहा जिसे गुरु तेगबहादुर सिंह जी ने नकार दिया। तब ओरंगजेब के आदेश पर गुरु तेग बहादुर जी का सिर कलम करवा दिया गया था। उनकी इस शहाद को सिख धर्म में महान बलिदान का नाम दिया गया है। कैलिफोर्निया विश्व विद्यालय के नोएल किंग इस घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं कि 'गुरु तेग बहादुर का बलिदान दुनिया में मानव अधिकारों की रक्षा करने के लिए पहली शहादत थी'
गुरु तेग बहादुर सिंह ने सांस्कृतिक विरासत और धर्म की रक्षा के खातिर अपना जीवन बलिदान कर दिया। उन्होंने कई ऐसे विचार प्रकट किए जिन्हें अपनाकर आप सही रास्ते में चलकर एक सक्सेसफुल इंसान बन सकते हैं।
डर कहीं और नहीं, बस आपके दिमाग में होता है
समय की शक्ति के आगे सबकुछ है बेकार, राजा को बना सकती है पलभर में रंक
हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो, घृणा से विनाश होता है
गलतियां हमेशा क्षमा की जा सकती हैं, यदि आपके पास उन्हें स्वीकारने का साहस हो
अपने सिर को छोड़ दो, लेकिन उन लोगों को त्यागें जिन्हें आपने संरक्षित करने के लिए किया है। अपना जीवन दो, लेकिन अपना विश्वास छोड़ दो।
जिनके लिए प्रशंसा और विवाद समान हैं तथा जिन पर लालच और लगाव का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उस पर विचार करें केवल प्रबुद्ध है जिसे दर्द और खुशी में प्रवेश नहीं होता है। इस तरह के एक व्यक्ति को बचाने पर विचार करें।
हार और जीत यह आपकी सोच पर ही निर्भर है, मान लो तो हार है ठान लो तो जीत है।
दिलेरी डर की गैरमौजूदगी नहीं, बल्कि यह फैसला है कि डर से भी जरूरी कुछ है
जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए मनुष्य में इस गुण का होना है बेहद जरूरी, वरना हमेशा रह जाएंगे पीछे
सफलता कभी अंतिम नहीं होती, विफलता कभी घातक नहीं होती, इनमें जो मायने रखता है वो है साहस।